________________ 122 विक्रम चरित्र उसके अण्डों को खा जाया करता था / कौवी की युक्ति काक की स्त्रीने जब देखा कि वह दुष्टं सर्प मेरे सब अंडों को खा जाता है / तो वह बहुत दुःखी हुई। उस सर्प को मारने के लिये उद्योग करने लगी। एक दिन उस काक की स्त्री को सर्प को मारने का उपाय मिल गया। किसी बड़े धनाढ्य शेठ की पुत्री तालाब पर आई और लाख रूपयों के मूल्य का एक बहुत सुन्दर रत्नहार अपने गलेसे निकाल कर किनारे पर रख कर जल में प्रविष्ट होकर अपनी सखियों के साथ स्नान करने लगी। इतने में अवसर पाकर काक की स्त्रीने उस हार को ले लिया और सर्प के बिल में लाकर छोड दिया / इस के बाद उस सेठकी लड़की ने हारं को खोजने के लिये उस काक की पीछे भेजा। वे सब उस सर्प के मिल के पास पहुँच कर तथा पिल में हार को देखकर बिल को खोदने लगे। जैसे ही हार को उठाने लगे कि वह हार छूटकर बिल में नीचे चला गया तब उन लोगों ने समूचे बिल को खोदकर सर्प को मार डाला और वह हार ले लिया। इस प्रकार काक की स्त्रीने उपाय कर के उस सर्प को मारडाला / इस के बाद वह जो अण्डे देती थी वे जीते ही रहते थे। इससे वह जन्म पर्यन्त सुखी रहने लगी। अतः उपाय करने से सब कार्य सिद्ध होजायेंगे / तुम लोग किसी प्रकार की चिन्ता न करो। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org