________________ mmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmm. मुनि निरजनविजयसंयोजित विक्रमादित्यका स्वप्न . इस प्रकार अपने मंत्रियों को आश्वासन देकर राजा विक्रमादित्य शयन करने के लिये चला गया / दूसरे दीन किसी नौकर के अकस्मात् बहुत जोरसे बोलने पर राजा विक्रमादित्य की निद्रा भंग होगई। इस पर बहुत क्रुद्ध होकर राजा विक्रमादित्य कहने लगा :--"अरे दुष्ट ! मैं कितना अच्छा स्वप्न देख रहा था। तुमने बिना विचारे ही मुझको रात्रि में क्यों जगादिया ? मुझको तुम लोगोंने व्यर्थ ही जगादिया अतः मैं तुम लोगों को. दंड दूंगा।" राजा रूष्ट होने पर मनुष्यों को क्या क्या दुःख नहीं देता है ? / क्यों कि सब प्राणि अपने कर्म के अधीन रहते हैं, स्त्री स्वामी के अधीन रहति है, धान्य जल के अधीन कहा गया है और पृथ्वी राजा के अधीन रहती है। . प्रातःकाल जब भट्टमात्र आदि राजा विक्रमादित्य के सब मंत्री वहाँ पर आये और यह मालूम हुआ तो भट्टमात्रने उसे दंड माफ करने की विनती की। तब राजा विक्रमादित्य बोला:--" मैं रात में बहुत अच्छा स्वप्न देख रहा था परन्तु इन दुष्टोंने मुझको जगादिया।" मंत्रीश्वरने पूछा:-" आप कैसा स्वप्न देख रहे थे ?" राजा कहने लगा:--" स्वप्न में मैंने देखाथा कि पूर्व दिशा . के जंगल मे जल से भरा एक गम्भीर कूप है। उसके मध्य में एक Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org