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________________ 112 विक्रम चरित्र यह कथन सुनकर सुकोमलाने सोचा कि ' शायद मेरे ज्ञानमें कुछ न्यूनता होगी या मुझे कुच भ्रम रह गया होगा।' . इस प्रकार दोनों की युक्तिसंगत बातें सुनकर शालिवाहन राजा सहित सारी सभाको आश्चर्य हुआ। उधर वे तीनों देव आकाशमें उड कर जाने लगे। राजकुमारी सुकोमला का लग्न करने का आग्रह उनको जाता हुआ देखकर राजकुमारी सुकोमला राजसभाभे पिता के समक्ष कहने लगी कि यदि यह विद्याधर देव मेरे साथ पाणिग्रहण न करेगा तो मैं आत्महत्या करके मर जाऊंगी। राजा शालिवाहन अपनी पुत्रीके पुरुषके प्रति द्वेष को जाते देखकर प्रसन्न हुए। साथही उसका ऐसा आग्रह देखकर तुरन्त ही उस जाते हुए देव को कहा कि 'हे देव ! आप मेरी इस पुत्रीके साथ पाणिग्रहण करके जाओ वरना मैं अपने पूरे कुटुम्बके साथ आत्महत्या करुंगा जिसका पाप तुम्हें लगेगा। अत : हे देव ! आप अभयदान देकर मुझे मेरी पुत्री को जीवित रहने दो।' कहा है कि " ज्ञान दानसे ज्ञानी, अभयदानसे निर्भय, अन्नदानसे सुखी और औषध दानसे निरोगी होते हैं / अतः सज्जन पुरुष अपनी शक्ति अनुसार परोपकार करके अपना फर्ज पूरा करते हैं।"* *ज्ञानवान् ज्ञानदानेन, निर्भयोऽभयदानंतः। अन्नदानात्सुखी नित्यं, नियाधिर्भेषजाद् भवेत् // 316 // Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004265
Book TitleMaharaj Vikram
Original Sutra AuthorShubhshil Gani
AuthorNiranjanvijay
PublisherNemi Amrut Khanti Niranjan Granthmala
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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