________________ मुनि निरंजनविजयसंयोजित 111 ___ 'उस शुक के भवमें शुभ ध्यान में मर कर हम तीनों नर्तक विद्याधर देव हुए, किन्तु उस दुष्ट शुकी की क्या गति हुई वह मैं नहीं जानता। इस तरह छहों भवों में मैंने यथाशक्ति यात्रा तथा भोजन आदिसे स्त्रीका मनोरथ पूर्ण किया किन्तु दुष्टा स्त्रीने अपने बुरे स्वभाव को नहीं छोडा और कभी भी मुझे मेरा आदेश मानकर संतोष नहीं दिया।' पाठकगण ! यह तो आप जानते ही हैं कि राजपुत्री सुकोमला पुरुष वेष धारण करके राजसभामें नृत्यको देखने आई हुई थी, राजा के आग्रह से राजसभामें विद्याधर विक्रमादित्यने अपने स्त्री देवका कारण सातों भवोंमें स्त्री द्वारा प्राप्त दुःखको ही बताया। उस समस्त वर्णन को सुन कर राजपुत्री सुकोमला मनही मन अत्यंत आश्चर्य चक्ति हुई / साथही तुरन्त प्रकट होकर बोली कि ' अरे दुष्ट तू ही आग लगने पर मुझ शुकीको दो बच्चोंके साथ छोडकर भाग गया था और मैं ही दोनों बच्चोंके साथ उस दावानलमें जल कर मर गई थी। वहांसे मरकर मैं यहाँ पर राजकुमारी के रूपमें उत्पन्न हुई हूँ।" .. राजकुमारीका यह कथन सुनकर वह विद्याधर विक्रमादित्य बोला कि -- अब तुम झूठ मत बोलो / यदि तुम दोनों बच्चोंके साथ जलकर मर गई थी तो अपने दोनों बच्चों को बतलाओ नहीं तो मैं अपने दोनों बच्चोंको बतलाता हूँ। ' राजकुमारीके कहने पर कि 'मैं नहीं जानती तुमही बतलाओ,' वह विद्याधर बोला कि 'ये दोनों अभी भी मेरे साथ हैं और पूर्व भवमें भी साथ थे / ' विद्याधर का Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org