________________ मुनि निरंजनविजयसंयोजित होना बतलाये थे और राजसभा में राजकुमारी सुकोमला के कहे हुए . सातों भवों की वार्ता उसने उलटे तौरपर कह सुनाई। वह कहने लगा 'इस भव से पूर्व सातवें भव में मैं लक्ष्मीपुर में धन नाम का. श्रेष्ठी था। मेरे श्रीमती' नाम की एक पत्नी थी और 'कर्मण' नाम का एक पुत्र था। मैंने व्यापार आदि से काफी धन का संचय किया और समय समय पर दीन दुःखी जनों को सहायता करने तथा साधुतीर्थ आदि में धन व्यय करता था। धर्म द्वेषी 'श्रीमती' मेरे धर्मकार्यों में बाधा. डालती रहती थी और मेरे आदेश में नहीं चलती थी। वह पर्व आदि पर भी धन, द्रव्य व कपडों का सदुपयोग नहीं करती थी।' ___दूसरे भव में मैं चम्पापुरी में जितशत्रु नामका राजा हुआ और वहाँ भी मुझे मेरे विचार तथा कथन से विपरीत आचरण वाली पद्मा नाम की पत्नी मिली / तीसरे भव में मैं मलयाचल के वन में मृग बना / वहाँ भी मुझे मेरे प्रतिकूल ही पत्नी-मृगी मिली / चौथे भव में मैं देवलोक में उत्पन्न हुआ। और वहाँ मुझे जो देवांगना प्राप्त हुई वह भी मेरे विरुद्ध वर्तन वाली थी तथा मुझे हर समय कष्ट देती रहती थी। पांचवें भव में मैं पद्मपुर में देवशर्मा ब्राह्मण बना / वहाँ मुझे मनोरमा नाम की पत्नी मिली / उसने भी मुझे मेरे पूर्व की स्त्रियों की तरह ही कष्ट दिया / उसके विचार भी मेरे प्रतिकूल थे और वह मुझे हर समय हैरान किया करती थी।' 'छठे भव में मैं मलयाचल पर्वत पर 'शुक' बना / वहाँ मुझे Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org