________________ 908 . विक्रम चरित्र सदस्यों को मंत्र मुग्ध सा कर दिया। लोग अपनी सब सुध बुध भूल गये। थोडे समय बाद पुनः चेतना पाने पर राजा ने कहा कि " यदि आप नाराज न हो तो एक बात पूछू।" विद्याधर के आश्वासन देने पर राजा ने कहा कि " सब विद्याधरों के पास अपनी अपनी स्त्रियाँ हैं तो. आप को ही क्यों स्त्रियों से द्वेष है ? " यह समझाइये। वह विद्याधर (राजा विक्रमादित्य) बोला कि “स्त्रियाँ मनुष्य के पवित्र हृदय में प्रवेश कर मद, अहंकार तथा अनेक प्रकार की विडंबना एवं तिरस्कार करती हैं। साथ ही वे अपने कटु वचन बाणोंसे उसे घायल कर देती हैं और कभी कभी अच्छे वचनों से उसे आनंद प्राप्त भी कराती है। अर्थात् स्त्रियाँ सब प्रकार के प्रपंच करती हैं। " जैसे कहा है " जिस में वंचकता, छलकपट, कठोरता, चपलता एवं कुशीलता आदि स्वाभाविक दोष हैं वैसी स्त्रियों से कौन सज्जन प्रेम कर सकता है ? "* विक्रमके पूर्व सात भव ___राजा शालिवाहन के पूछने पर कि तुम ऐसा किस प्रकार कह सकते हो, उस विद्याधर विक्रमादित्यने राजा के आगे स्पष्टतः स्त्री के उन सब दोषों का वर्णन किया जो राजकुमारी सुकोमला ने पुरुष जाति में *वंचकत्वं नृशंसत्वं, चंचलत्वं कुशीलता / / इति नैसर्गिका दोषा यासां तासु रमेत कः?॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org