________________ विक्रम चरित्र mwwwmammmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmm. “जिसके देखने से मन में द्वेष पैदा हो और आनन्द का नाश हो जाय, उसे जानना चाहिये कि यह किसी पूर्व जन्म का मेरा पक्का शत्रु है / "x / तब विक्रमा ने आग्रह से कहा, " तुम अपने पूर्व के सातों भव (जन्म) की कथा सुनाओ, जिससे मुझे सब हाल मालूम हो जाय / " इस प्रकार की प्रेम से परिपूर्ण मधुर-वाणी सुनकर राजकन्या सुकोमला बड़े प्रेम से विक्रमा को सविस्तर सातं भवों का वर्णन सुनाने लगी। सुकोमला कहने लगी, “हे विक्रमे ! मैं अपने सातों भवों की कथा तुझे सुनाती हूँ, सो तुम ध्यान देकर सुनो / " धन और श्रीमती ___ इस भव से सातवें भव में मैं एक सुरम्य " लक्ष्मीपुर नगर " में धन नामक श्रेष्ठी की 'श्रीमती' नामकी पत्नी थी। उसने सुस्वप्न से सूचित एक पुत्र को जन्म दिया / जन्मोत्सव कर के उसका नाम 'कर्मण' रखा। धन श्रेष्ठी ने व्यापारादि से धन इकट्ठा किया। धनी होने पर भी कृपण होने से पुण्य कर्मादि में और अपने शरीर के लिये थोडा सा भी धन खर्च नहीं करता था। वह खाने पीने की कभी अच्छी व्यवस्था नहीं करता था और कुटुम्बादि को अच्छे वस्त्र भी पहनने नहीं देता था। जैसा कहा है:xयस्मिन् दृष्टे मनोद्वेषस्तोषश्च प्रलयं व्रजेत् / स विज्ञेयो मनुष्येण प्रत्यर्थी पूर्वजन्मनः // 104 // Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org