________________ मुनि निरंजनविजयसंयोजित , गये हे नेमिनाथ भगवान् ! तुम विजयी बने रहो।" : ___ राजपुत्री सुकोमला को विक्रमा स्त्री पुरुष मिश्रित अनेक प्रकार के मनोरंजक गायन सुनाकर चुप रही / तब राजपुत्री सुकोमला बोली " हे विक्रमे ! पुरूष का नाम लेने का मैंने निषेध किया था तो भी तू मुझे दुःखदायक पुरुष का नाम लेकर क्यों जलाती है ?" तब विक्रमा हास्य करती हुई बोली " हे सुन्दरि ! मैं मनुष्यों के नाम किसी भी गाने में नहीं लाई; किन्तु देवों के नाम ही कहीं कहीं लाई हूँ। क्या इससे भी आपको ग्लानि होती है / " तब राजपुत्री सुकोमला बोली " पूर्व के सात जन्मों के दुःख का मुझे स्मरण है / इसलिये पुरुष चिन्ह धारण करने वाले सब जाति के जीवों से मुझे स्वभाविक द्वेष है / " शास्त्र में ठीक ही कहा है: " जिसको देखने से ही मनमें संतोष या आनन्द पैदा हो एवं द्वेष सर्वथा नाश हो जाय उसको जानना चाहिये कि यह पूर्व जन्म का बांधव या स्वजन अवश्य होगा / "+ : मेघश्याम श्रीमन्नेमे ! विद्युन्मालावन्मां मुक्त्वा / .... का ते शोभा भूभृच्छृङ्गे राजीमत्येत्युक्तो जीयाः॥ 99 // +यस्मिन् दृष्टे सनस्तोषो द्वेषश्च प्रलयं व्रजेत् / स विज्ञेयो मनुष्येण बान्धवः पूर्वजन्मतः // 103 // Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org