________________ विक्रम परिव क्रूर-पुष्प बाण लिये हुये कामदेव को भस्म करने के लिये क्रोधरूपी . अग्नि से प्रज्वलित होने के कारण रौद्र-रस से युक्त है, वे तीनो नेत्र तुम लोगों की रक्षा करें। "+ गौरी (पार्वती) अपने स्वामी शंकरजी से कहती हैं-"आपकी यह भिक्षावृत्ति देखने से मुझे अत्यन्त दुःख होता है। इसलिये आप विष्णु से जमीन, कुबेर से अनाज का बीज, बलदेव से हल, एवं यम-: राज से महिष-पाडा और एक अपना बैल लेकर त्रिशूल का फाल बनाकर खेती करो / मैं भोजन बनाऊँगी और स्कन्द (कार्ति केय) खेत, बैल आदि की रक्षा करेगा। इस प्रकार की गौरी की वाणी तुम लोगों की रक्षा करें / "x " मेघसमान रूपवाले हे नेमिनाथ ! बिजली के समान रूपलावण्यवती मुझे छोड़ कर तुम गिरनार के शिखर पर जाकर क्या शोभा पाओगे ? / इस प्रकार उग्रसेन राजा की पुत्री राजीमती द्वारा कहे + एकं ध्याननिमीलितं मुकुलितं चक्षुद्धितीयं पुनः, पार्वत्या विपुले नितम्बफलके श्रृंगार-भारालसम् / अन्यत् क्रूरविकृष्टचापमदनक्रोधानलोद्दीपितं, शम्भोभिन्नरसं समाधि-समये नेत्रत्रयं पातु वः॥९७॥ x कृष्णात् प्रार्थय मेदिनी धनपतेर्बीजं बलाल्लांगलम्, प्रेतेशान् महिषं वृषं च भवतः फालं त्रिशूलादपि / शक्ताऽहं तव भैक्षदानकरणे स्कन्दोऽपि गोरक्षणे, दग्धाऽहं तव भिक्षया कुरु कृर्षि गौर्या वचः पातु वः // 98 // Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org