________________ मुनि निरंजनविजयसंयोजित में आकर गीत सुनने के लिए भद्रासन पर बैठी / आसपास में बहुत सी दासिया बैठी हुई थीं। . विक्रमा अच्छा मनोहर स्वरालाप करके अद्भुत गाना गाने लगी। अहा ! क्या मधुर गाना था! मानों अमृत का ही झरना झरता हो! दासियों के समूह में से वाह वाह की ध्वनि आने लगी। विक्रमा का गाना सुनते सुनते दासी आदि सब परिजन वहाँ पर ही चित्रपट की तरह स्थिर निद्राधिन हो गये / केवल राजकुमारी सुकोमला एक. ध्यान से सुनती रही। ___ इस प्रकार कुछ गीत गाने के बाद विक्रमा-पार्वती के साथ महादेव, लक्ष्मी देवी के साथ विष्णु भगवान्, इन्द्राणी के साथ इन्द्र, रति के साथ कामदेव, रोहिणी के साथ चन्द्रमा तथा रत्नादेवी के साथ सूर्य आदि स्त्री-पुरुष मिश्रित वर्णन वाले सुन्दर सुन्दर गाने आलापने लगी। बाद में रात बहुत बीत जाने पर उत्साह से उपसंहार करती हुई विक्रमा बोली:विक्रमा का जाना व गीतगान पूर्वक सात भवों की कथा . "समाधिसमये भिन्न भिन्न रस वाले पार्वती पति शंकर के तीनों नेत्र-जिन में एक तो ध्यान के कारण अधिक विकसित पुष्पकली के समान शान्त रस से युक्त है, दूसरा पार्वती के कटि-प्रदेश को देखने में आनन्द से प्रफुल्लित होने के कारण श्रृंगार-रस से युक्त है, तीसरा. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org