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________________ विक्रम चरित्र तब राजपुत्री ने जवाब दियाः-" उसे स्नान के लिये यहाँ बुला लाओ।' दासी ने आकर विक्रमा से कहा:-" मेरी स्वामिनी आपको स्नान के लिये स्नानागार में बुलाती हैं।" यह सुन कर विक्रमा गम्भीरता पूर्वक बोली:-" अपनी स्वामिनी बंधी हुई कंचुकी आदि मैं नहीं खोल सकती / क्योंकि उसे यह बात मालूम हो जाने से मुझे पचास चाबुक मारेगी / इस लिये तुम जाकर कह दो कि वह स्नान नहीं करेगी।" / दासी ने राजपुत्री सुकोमला के पास जाकर विक्रमा की कही हुई बात सुना दी। फिर सुकोमला शीघ्र स्नान करके विक्रमा के पास आई और बोली:-" चलो, हम दोनों एक साथ भोजन करें।" तब विक्रमा बोली:-" दो स्त्री एक साथ भोजन करें, यह अच्छा नहीं। एक साथ स्त्री-पुरुष रूप युगल का भोजन ही शोभा देता है।" विक्रमा का यह कथन सुन कर राजपुत्री जरा खिन्नता से बोली:-" हे विक्रमे ! यदि तू मेरी हितैषिणी हो, तो मेरे आगे पुरुष का नाम भी न लेना।" फिर सुकोमला भोजन गृह में जा कर भोजन कर के शीघ्र ही लौट आई और चित्रशाला Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004265
Book TitleMaharaj Vikram
Original Sutra AuthorShubhshil Gani
AuthorNiranjanvijay
PublisherNemi Amrut Khanti Niranjan Granthmala
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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