________________ 74 विक्रम चरित्र ___ रूपश्री ने आये हुए पाँचों अतिथियों की सेवा में कुछ भी कमी नहीं रखी / राजकन्या सुकोमला के पास जाने की उसे बहुत शीघ्रता थी, किन्तु क्या करे ? उसने अपने घर आये हुए अतिथियों का सत्कार करना आवश्यक समझा / जल्दी ही इन आये हुए अतिथियों की सेवा-शुश्रूषा करने के लिए अपने दास दासियों को सूचना करके, वह राजपुत्री सुकोमला के महल में जाने के लिये तैयार हुई / तब महाराज विक्रमादित्य ने 'रूपश्री' से कहा:--" यदि राजपुत्री सुकोमला विलम्ब का कारण तुम्हें पूछे तो यही बताना कि अवन्तीपति महाराज विक्रमादित्य की सभा में नाचने वाली पाँच नर्तकिया गाने बजाने में बड़ी ही चतुर हैं, वे मेरे घर आई हैं। उनका सत्कार करने में ही आज इतना विलम्ब हुआ है / " Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org