________________ मुनि निरंजनविजयसंयोजित mmmmmmmmmmmwwwwww.mewww के लिये स्त्री रूप धारण कर वेश्या के घर आकर रहना पड़ा, शास्त्रकारों ने सचही कहा है: " देव लोक में रहने वाले इन्द्र को और मल-मूत्रादि में रहने वाले कीड़े आदि सभी प्राणियों को, जीने की इच्छा और मृत्यु का भय समान रहता है।"+ "इस संसार में किसी भी प्राणी को " तुम मर जाओ" ऐसा शब्द कहने पर भी महा दुःख होता है, तो लाठी आदि की चोट से कैसा दुःख होता होगा ?"x इस संसार में जीने में ही प्राणी कल्याण पाता है, और यह शास्त्र में भी कहा है: " इस जगत् में जीवित प्राणी ही कल्याण को पाता है और जीवित रहने से ही धर्म कर सकता है तथा जीने से किसी प्राणी का उपकार भी कर सकता है; अतः जीने से क्या नहीं होता ? यानी सब कुछ होता है / "* . . +अमेधा मध्ये कीटस्य सुरेन्द्रस्य सुरालये / समाना जीविताऽऽकांक्षा समे मृत्युभयं द्वयोः // 53 // xम्रियस्वेत्युच्यमानेऽपि देही भवति दुःखितः। मार्यमाणः प्रहरणैर्दारूणैः स कथं भवेत् ? // 54 // * जीवन् भद्राण्यवानोति, जीवन धर्म करोति च। जीवन्नुपकृतिं कुर्यात् , जीवतः किं न जायते ? // 55 // Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org