________________ विक्रम चरित्र अवन्तीपुरी में आया हूँ / तुम्हारे साहस और पराक्रम से मैं संतुष्ट हुआ हूँ। तुम मुझसे मनोवाञ्च्छित वर माँगो / ' ___ महाराज ने कहा—'हे देव ! मुझे किसी चीज की आवश्यकता नहीं है, क्यों कि मेरे राज्य में आवश्यकतानुसार सब कुछ सुलभ है।" गुटिका प्रदान बाद में देव ने प्रसन्न होकर आग्रह पूर्वक इच्छानुसार रूपपरिवर्तन करने वाली एक गुटिका राजा को दी और विद्युत् वेग से क्षण भर में ही वह देव सभा से अदृश्य हो गया / ___किसी देवताका दर्शन मनुष्य को किसी पूर्व-जन्म के सञ्चित पुण्य से ही होता है और वह कभी निष्फल नहीं जाता। नापित-रूपधारी देव के मुख से राज-कुमारी सुकोमला के सौन्दर्य एवं अन्य गुणादि का वर्णन सुनकर महाराजा विक्रमादित्य को सुकोमला के प्रति अत्यन्त आकर्षण हुआ, एवं उसकी प्राप्ति के लिये अनेक प्रकार के विचार-विकल्प मनमें करने लगे, परन्तु वे लज्जावश अपना मनोभाव किसी के आगे प्रकट न कर सके, मनुष्यों का सामान्यतः यह स्वभाव ही है कि जब तक अपने मनोभाव किसी प्रकार सिद्ध नहीं हो जाय तब तक उसका मुख म्लान रहता है। इसी तरह महाराज विक्रमादित्य के मुख पर भी उदासीनता मालूम Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org