________________ मुनि निरंजनविजयसंयोजित प्रतिबिम्ब देखते हुए महाराजा अपने मनही मन आश्चर्य चकित हुए / महाराजा को इस प्रकार चकित देख नाई ने कहा- ' हे राजन् ! आपने अपने सुन्दर स्वरूप को देखकर मनमें जो विचार किया है, वह बात ये आपके बुद्धिमान मन्त्री लोग कहें, वरना मैं अज्ञानी आपके सामने आपकी चिन्तित बात कहूँ'। बादमें महाराजा के पूछने पर मन्त्री लोगों ने सोचा कि ' यह नाई बहुत वाक्चतुर मालूम पड़ता है।' अतः परस्पर सब अमात्य वर्ग विचार कर बोला कि-' हे राजन् ! इस घमंडी नापित को ही यह पूछा जाय व ठीक / ' राजाका सौन्दर्य __महाराज के पूछने पर नापित ने मधुरवाणी से कहा 'हे राजन् ! आपने यह सोचा-कि ' इस पृथ्वी पर मेरे जैसा रूपवान् मनुष्य कोई नहीं है / परन्तु इस प्रकार का गर्व महान् पुरुष नहीं करते क्यों कि 'सब प्राणियों में कर्मानुसार न्यूनाधिक भाव प्रत्यक्ष देखे जाते हैं।' ... तब महाराजने नाई से कहा कि-'अरे नाई ! तुमने संसार में अद्भुत क्या क्या देखा है ? वह सब तुम निर्भय होकर मेरे सामने कहो! प्रतिष्ठानपुर का वर्णन . तब नाई कहने लगाः " स्वर्ग समान प्रतिष्ठानपुर में Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org