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________________ विक्रम चरित्र अपने बलका अहंकार छोडकर मेरे चरण की सेवा करने में तत्पर... हो जाओ।' विक्रम के पराक्रम से वेतालकी प्रसन्नता -- तब राजा और अग्निवेतालमें खड्गाखड्गी युद्ध व बहु युद्ध हुआ / राजाकी जीत हुई / राजाके इस अद्भुत परक्रम एवं भाम्य से सन्तुष्ट होकर अग्निवेताल बोला कि तुम्हारे ऊपर मैं प्रसन्न हूँ अतः तुम वाञ्छित वर मागो / कहा भी है कि:- . " दिन में बिजली का चमकना, रात्रि में मेघ का गर्जन, .. स्त्री और अबोध बच्चे का आकस्मिक बचन तथा देवताओं का दर्शन ये . सब कभी निष्फल नहीं होते। " + . तब राजा बोला—" हे देव ! यदि तुम हमारे पर से प्रसन्न हो तो मैं जब तुम्हारा स्मरण करूँ तब तुम मेरे पास शीघ्र आजाना और मेरा कहा हुआ सब काम करना तथा मुझ पर पिता के समान अटूट स्नेह रखना"। तब केताल बोला-" हे राजन् ! हमारी सहायता से तुम भय . रहित राज्य करते हुए सुखसे रहो"। + अमोघम वासरे विशुत्, अमोघं निशि गर्जनम् / नारीबालवचोऽमोघ-ममोघं देवदर्शनम् // 159 // Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004265
Book TitleMaharaj Vikram
Original Sutra AuthorShubhshil Gani
AuthorNiranjanvijay
PublisherNemi Amrut Khanti Niranjan Granthmala
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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