________________ विक्रम चरित्र मेरे सौ वर्ष की आयु में एक कम कर या एक बंढ कर दो शून्य रूप दोष को सर्वथा निकाल दो।' विक्रमका अग्निवेतालकी शक्ति नापना .. तब अग्निवेतालने राजा से कहा कि-' हे राजन् ! तुम्हारी आयु को कम या अधिक देवेन्द्र भी नहीं कर सकते, तो फिर हमारे जैसे व्यक्ति के लिये कहना ही क्या ? ___तब अवधून राजवीने कहा कि-' हे अग्निवेताल ! तुम और मैं यदि सुख से मिल-जुल कर चिरकाल तक रहें तो पृथ्वी पर सकल प्रजा भी सुखसे ही रहेगी।' .. इस प्रकार राजाका वचन सुनकर अग्निवेताल हर्षित होकर अपने स्थान को गया। तब राजा भी निर्भय होकर सो गया। इसके बाद दूसरे दिन प्रातःकाल राजाने उठकर नित्य कृत्य कर सारा दिन आनन्द से बिताया। रात्री में बलिकी सामग्री तैयार रखे बिना ही राजा शयन-गृह में सावधानी से सो गये। रात्रिका अंधकार फैल रहा था। एक प्रहर रात्रि बीत चुकी थी। उज्जयिनी (अवन्ती) नगरी में सब प्रजा आराम कर रही थी। उस समय नित्य-क्रम के अनुसार अग्निवेताल रक्षस अपना बलि लेनेको राजा के महल में आ पहुँचा। किन्तु उस दिन उसके लिये वहाँ बलिका कुछ भी ठिकाना ही नहीं था। तब बलि दिये बिना सोये हुए महाराजा को देखकर वह क्रोध से बोला- अरे दुष्ट ! महीपाल ! Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org