________________ / सातवा प्रकरण विक्रमका पराक्रम अब प्रभात होते ही मन्त्री वर्ग और राजकर्मचारी तथा पौरजन आदि मिलकर रात्रि सम्बन्धी हाल देखने के लिये राजमहल में आये। वहाँ राजवी अवधूत को सकुशल देखकर सब लोग बहुत प्रसन्न हुए। अवधूत राजबी के मुख से रात्रि सम्बन्धी सब हाल सुनकर बहुत ही आश्चर्य-चकित हुए और नमस्कार कर कहने लगे कि हे राजन् ! हे धीर-वीर ! चिरकाल तक आपकी जय हो। प्रजाकी प्रसन्नता मन्त्रीलोग एवं प्रजागण ने राजाका पुनर्जन्म समझकर सारी नगरी में स्थान-स्थान पर बड़े उत्सव के साथ तोरण आदि से नगरी को सुशोभित कराया। आजका दूसरा दिन भी पौरजनने आनन्द से बिताया। मन्त्रीवर्ग और प्रजागण आदि को रात्रि की हालत से अवधूतकी शक्तिका विश्वास हुआ तथा उसके प्रति बहुमान उत्पन्न हुआ और परस्पर कहने लगेः 'ये राजवी विद्या--सिद्ध तथा बडे ही पराक्रमी हैं, इसलिये ये दुष्ट अग्निवेताल को वश करके या नाश करके अच्छी प्रकार राज्यपालन करेंगे।' इस प्रकार राजवी अग्निवेताल के कथनानुसार- कुछ दिन तक हमेशा बलि सामग्री तैयार कर रखता था और अग्निवेताल भी रोज Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org