________________ मुनिनिरंजनविजयसंयोजित 41 गुणों के रहते हुए भी इनमें पराक्रम और साहस अधिक था। क्यों किः____ " पराक्रमशाली मनुष्य के लिये पर्वत के समान बड़े कार्य भी तृण के तुल्य तुच्छ हो जाते हैं। और सत्त्वहीन पुरुष के लिये तृण तुल्य छोटा कार्य भी पर्वत के समान बड़ा हो जाता है / और भी कहा है:-" * " जो मनुष्य इस पृथ्वी पर विपत्ति में तथा दुःसह विरह में अत्यन्त धैर्यका आश्रय लेता है वही पुरुष है और सब स्त्री के समान हैं।" + * पराक्रमवतां नृणां, पर्वतोऽपि तृणायते। ओजोविवर्जितानां तु, तृणमप्यचलायते // + अथ क्षितौ विपत्तौ च, दुःसहे विरहेऽपि च / येऽत्यन्तधीरताभाजस्ते नरा इतरे स्त्रियः // . Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org