________________ मुनिनिरंजनविजयसंयोजित " सिंह गुफा से शिकार के लिये निकलते समय शुभ शकुन तथा चन्द्रबल और अपनी रिद्धि-सिद्धि का विचार नहीं करता है, परन्तु अकेला ही लाखों हाथी आदि बलवान् जानवर का सामना करता है / इसलिये जहाँ साहसरूप शक्ति है, वहाँ ही सब प्रकार की सिद्धि होती है।"x असुरको बलि व उसकी संतुष्टि इसके बाद मध्यरात्रि में भयंकर रूप धारणकर अग्निवेताल असुर हाथ में खड्ग लेकर राजमहल में राजवी अवधूत के शयन-गृह में शय्या के निकट आया तब अवधूत -राजवीने पराक्रमयुक्त वाणी से कहा कि 'हे असुर ! पहले यह रखे हुए बलि को लेकर पुष्ट हो जाओ, फिर मेरे साथ युद्ध करना होतो तैयार होना।' अग्निवेताल ने राजा की बताई हुई बलि खाई। राजा का निर्भयसूचक वचन सुनकर उसने विचार किया कि यह राजा तो बहुत पराक्रमीं मालूम पडता है / कहाभी है कि-" जो अनेक विनों का सामना करते हुए अखण्ड उत्साह से आरम्भ किये हुए कार्य को बिना समाप्त किये नहीं छोड़ता है, वैसे सिंह सदृश बलवान् पुरुष से देव भी शंकित होते हैं"। " सदाचारी, धीर, धर्मवान् और दीर्घदर्शी विचारदक्षऔर न्याय से चलने वाले पुरुषको राज्यलक्ष्मी रहे या चली जाय xसीह सउण न चंदबल वि जोइ धण रिद्धि / एकल्लो लक्खहिं भिडइ जिहां साहस तिहां सिद्धि // 129 // Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org