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________________ विक्रम चरित्र तब मन्त्रीने अवधूत का रूप, सौंदर्य तथा बल-साहस आदि देख / कर बहुत प्रसन्नता से इस वचन को स्वीकार किया। इसके बाद मन्त्री .. अवधूत के पास से प्रसन्नता से नगरी में लौट आया और नगर के / माननीय प्रजाजन तथा राज्य विकारियों को महल में आमन्त्रित कर. अवधूत के साथ हुई बात सत्र के समक्ष कही और सबने मिलकर . परस्पर विचार करके अवधूत को शुभ मुहूर्त में राजगद्दी पर बैठाने का निश्चय किया / तब नगर के चतुष्पथ तथा मार्ग और बाजार आदि सब स्थानों को अनेक प्रकार के फूल-माला तथा ध्वजा-पताका और तोरण आदि से सुशोभित करने की सूचना करके सब अपने अपने स्थानपर गये। पाठक गण ! इस परिचित और प्रभावशाली महापुरुष अवधून . का राज्यसिंहासन पर स्वामित्व होना सुनकर प्रजमें आनन्द छा गया, भविष्य की शुभ आशा रखती हुई सभी प्रजा नगर को सुसेभित करने में शीघ्रता करने लगी क्योंकि राज्याभिषेक का शुभ मुहूर्त ज्यो.िषियोंने कल का ही निश्चित किया है / यद्यपि अवन्ती की प्रजा तथा कर्मचारीगप्प सारे दिन के कार्य से थके हुए थे, तथापि उत्साह से सभी का मुखकमल खिल रहा था / इधर सूर्य भगवान् भी अपनी सवारी से अस्ताचल की चोटी पर पहुंच गये थे। उधर रत्रि भी जगतकी थकावट दूर करने को आ पहुंची थी / एक प्रहर रात्रि व्यतीत हो चुकी है। सब लोग अपने अपने शयन गृह में जाकर शय्या की गोद में लेट गये हैं / रात्रि निश्शब्द हो चुकी थी, उस समय वह उज्ज्वल वेषधारी Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004265
Book TitleMaharaj Vikram
Original Sutra AuthorShubhshil Gani
AuthorNiranjanvijay
PublisherNemi Amrut Khanti Niranjan Granthmala
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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