________________ 33 मुनिनिरंजनविजयसंयोजित जनता पर इनका अच्छा प्रभाव पडा, जिससे सैंकडों लोग दर्शन के लिये आने लगे / अवधूत की बहुत ख्याति सुनकर एक दिन राजमन्त्री उनके पास दर्शनार्थ आया और अवन्ती की राजगद्दी का हाल और अग्निवैताल का उपद्रव सम्बन्धी सब वृत्तान्त अवधूत को सविस्तर सुनाया। साथ साथ इसकी शान्ति का उपाय और अवन्ती राज्य की रक्षा करने की नम्र प्रार्थना की। यह सुनकर अवधूत को भट्टमात्र के वचन एवं श्रृगाली की भविष्य वाणी याद आई / मन्त्री विक्रमने विक्रमादित्यको ढूँढने संबंधी कहा। वेतालको संतुष्ट करने के लिए बलि आदि देने की बात कही। अंत में मनहीमन सोच कर मन्त्री से कहा:-" हे मन्त्रीश्वर ! तुम लोग यदि यह राज्य मुझको दे दो, तो मैं उस दुष्ट असुर को किसी प्रकार वश करके समस्त प्रजा की न्याय से रक्षा करूँगा / राज्य नीति में कहा भी है- .. :: " दुष्ट को शिक्षा, स्वजनों को सत्कार, न्यायसे कोष (राजभंडार ) की सदा वृद्धि, सब प्रजाओं में समदृष्टि तथा शत्रु आदिसे राज्य की रक्षा ये पांच राजाओं के लिये प्रधान धर्म बताये गये हैं।" - दुष्टस्य दण्डः स्वजनस्य पूजा, न्यायेन कोशस्य सदैव वृद्धिः। अपक्षपातों रिपुराष्ट्ररक्षा, पश्चैव धर्माः कथिताः नृपाणाम् // 124 // Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org