________________ मुनिनिरंजनविजयसंयोजित अवधूत भी क्षिप्रा नदी के तट पर व्याघ्रचर्म पर अपने हाथ पर सिर रखकर निद्रावस्था में सोया हुआ था / रत्रि धीरे धीरे व्यतीत हो गई। जब अवधूत की नजर अकस्मात् आकश-पट पर पहुंची, तो उसने प्रभात सूचक प्रकाशमान (शुक्र) तारा देखा तब वहां इष्टदेव का स्मरण करते हुए 'उठा ओर नित्यक्रिया तथा शौचादि से निवृत्त हुआ। उस समय पूर्व दिशा ने बालसूर्य को अपनी गोद में धारण किया था। अर्थात् प्रभात हो चुका था। Pos Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org