________________ मुनि निरंजनविजयसंयोजित नशीन किया / दिन तो इसी प्रकार धूमधाम के साथ बीत चुका / रात्रि में सब अपने अपने घर लौट गये और राज्य कर्मचारी भी अपना कार्य समाप्त कर निश्चिन्त हो कर सो गये। नूतन अवन्तीपति श्रीपति महाराज शयन-गृह में सोये थे / मध्यरात्रि में अग्निवेताल ने आकर सोये हुए राजा को मार डाला / सुबह होते ही राज-कर्मचारी लोग राजाको शय्या न छोडते देखकर आश्चर्यान्वित हुए और कमरे में जाकर उनको शरीर हिलाकर उठाया तो भी न उठे / तब सब ने निश्चय किया कि राजा तो मरे हुए हैं। ढकी हुई आग के समान जो शोकाग्नि शान्त हुई थी वह आज फिर से धधक उठी / नूतन राजा को प्राणाधार मानकर जो सारी प्रजा कल आनन्द‘सागर में ओतप्रोत थी, वही आज दुर्दैववश राजा की अकाल मृत्युसे दुःखसागर में डूब गई। . क्षत्रियोंको राज्य का सुप्रत करना और अग्निवेतालका उपद्रव___ फिर प्रजागण तथा मन्त्री-वर्ग आदिने इसी प्रकार दूसरे कई क्षत्रिय कुमारों को गद्दीपर बैठाया, किन्तु दुष्टात्मा अग्निवैताल असुर क्रम से उन सबों को उसी प्रकार रात्रि में यमद्वार तक पहुँचा देता था। तब प्रधान वर्ग इस बात को देव-कोप समझकर उसकी शान्ति के लिये बहुत बलि दिया करते थे, किन्तु तब भी वह दुष्टबुद्धि शान्त न हुआ; क्यों कि दुर्जनों का सन्मान भी करे, तो भी सज्जन को कष्ट-ही देता हैं। जैसे सर्प को कितना भी दूध पिराया जाय तो केवल विष की ही वृद्धि होती है परन्तु शन्ति नहीं होती, एवं कौए को दूध से स्नान करावे Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org