________________ पाँचवाँ प्रकरण अवधूत (विक्रम)को राज्य देनेका निश्चय शोकविह्वल अवन्ती मन्त्रीवर्ग और पौरजनों के अयन्त आग्रह करने पर भी अवन्तीस्वामी भर्तृहरि तप करने के लिये प्रजाको निराधार छोड़कर वनमें चले गये। इस लिए जो अवन्ती नगरी स्वामीयुक्त होने के कारण अनेक दिव्य वस्त्राभूषणों से सुन्दर सजी हुई तथा पुष्प फल से भरी हुई मानो अपने पति का स्वागत कर रही थी, वही अवन्ती नगरी आज कर्मवश विधवा स्त्री की तरह भूषणादि हीन अपनी शोकाश्रु से मुखचंद्र को धो रही है। इसी प्रकार जो जो अवन्ती राज्य के प्रजाजन इस वृत्तान्त को सुनते, वे थोडी देर के लिये तो काष्टवत् हो जाते और पीछे शोकाश्रु बहाकर जलाञ्जलि देते थे। इधर राज्य-सिंहासन शून्य देखकर अपना सुन्दर मौका पाकर ‘अग्निवेतील' नामक एक असुर उसी समय अदृश्य रूपमें राज्यगद्दी पर बैठ गया। श्रीपतिका राज्याभिषेक तथा मृत्यु अब राजा के बिना राज्य-सिंहासन शून्य देखकर मन्त्रीवर्ग तथा प्रजागण के उस सिंहासन पर कुलीन श्रीपति.' नामक प्रसिद्ध क्षत्रिय को बड़े महोत्सव के साथ उत्साह सहित विधिपूर्वक गद्दी Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org