________________ विक्रम चरित्र शास्त्रकारोंने और भी विवरण किया है:सम्मोहयन्ति मदयन्ति विडम्बयन्ति, निर्भर्त्सयन्ति रमयन्ति विषादयन्ति / एताः प्रविश्य सदयं हृदयं नराणां, किं नाम वामनयना न समाचरन्ति // 64 // . अर्थात् स्त्रियों मनुष्यों के पवित्र हृदय में प्रवेश करके मोह, मद, अहंकार तथा अनेक प्रकार की विडंबना. एवं तिरस्कार करती और अपने कटुवचन रूप बाणद्वारा घायल कर देती हैं। इस प्रकार राजा भर्तृहरि ने स्त्रियों के विषय में बहुत सोचा और अन्त में यही निश्चय किया कि स्त्रियों पर विश्वास करना अपने आत्मा को ही धोखा देना देखो, यह पटरानी मुझसे किस प्रकार बातें बनाकर, मुझे खुश किया करती थी। मालूम होता था कि मानों मेरे बिना एक क्षण भी यह नहीं रह सकती / मैं भी इसकी मायावी मधुर भाषा में फँसा और अपने जीवन से भी अधिक मानकर इससे सम्मानपूर्वक प्रेम करता था, तथापि वह महावत के प्रेम में पड़ी / किसीने ठीक ही कहा है कि :- . ___" इत्थियां पुत्थियां कभी न सुद्धियां " - अर्थात् प्रायः स्त्रियों को कितना भी सँभाले और पुस्तकों को चाहे जितनी बार शुद्ध करने का प्रयत्न किया जाय तो भी शुद्ध नहीं हो सकती हैं। धिक्कार हो मुझे जो मैं इस प्रकार स्त्री में आसक्त रहा। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org