________________ विक्रम चरित्र से अजीर्ण हो जाता है और अत्यन्त दान करने से बलिराजा बंधन में पड गये / गर्व से ही रावण मारा गया। अति रूपवती होने के कारण ही सीता हरी गई / इसलिये ही अति सर्वत्र वर्जनीय कहा है। पटरानी द्वारा अपने यारको भेट ... इधर महारानी साहिबा महाराज से मिले हुए फल का प्रमाव सुनकर खुश हुई और सोचने लगी कि यदि मेरा प्राणप्रिय महावत मुझसे पहिले मरा तो. मैं भी मृतप्रायः ही हो जाऊँगी। इस प्रकार विचार कर रानी ने वह फल अपने यार महाक्त को देना ही उचित समझा और स्नेह प्रकट करते हुए वह फल महावत को देकर उसका गुण सुनाया। . ___महावत नगर की मुख्य वेश्या में आसक्त था। उसने वह फल वेश्या को दिया और उसका प्रभाव सुनाया। तब वेश्या ने. उस फल को प्राप्त कर सोचा कि:- मेरा यह नीच, निन्दनीय जीवन का लम्बा होना किस कामका ? इसलिये यह फल तो गो:ब्राह्मण प्रतिपालक महाराज को देना चाहिये / दिव्य फलका पुनः राजा के पास आना जिनके दीर्घजीवन से प्रजा का उपकार होगा और मुझ पर राजा प्रसन्न होंगे। यह विचार कर वेश्याने राजसभा में आकर फलका विस्तृत प्रभाव गा सुनाया और भक्ति से महाराज को Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org