________________ चौथा प्रकरण भर्तृहरिका संन्यासग्रहण बूरा जो देखन मैं चला, बूरा न देखा कोय / जो दिल खोला आपना, मुझसा बूरा न कोय // प्रजारक्षक महाराज भर्तृहरि ने ब्राह्मण द्वारा प्राप्त किया हुआ दिव्यफल खाने की इच्छा की / इतने में एक विचार मन में आया कि प्राणप्रिया पटरानी बिना मेरा लम्बा जीवन किस कामका ? इस विचार से स्नेह प्रकट करते हुए राजाने पटरानीको वह दिव्यफल दे दिया और वार्ता-विनोद कर अन्तःपुर से आराम भवन में चले गये। . दिव्य फलकी पटरानीको भेट महाराज ने अति प्रेम के कारण ही आयु बढानेवाले फल को स्वयं न खाकर पटरानी को दिया, किन्तु नीतिशास्त्र में कहा है कि:-" अति सर्वत्र वर्जयेत् " अर्थात् संसार के सभी कार्यों में अति करना बूरा है / बहुत पानी बरसने से दुष्काल पडता है / अधिक खाने Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org