________________ ... अर्थात् दुर्बल, अनाथ, बाल, वृद्ध तथा तपरवी और अन्यायी (दुष्ट चौरादि) से पीडित मनुष्य आदि प्राणियों के राजा ही शरण भूत है / अर्थात् इनका रक्षक राजा ही है। यह विचार कर मैं आप श्रीमान् को यह दिव्य फल अर्पण करने आया हूँ / कृपया यह स्वीकार कर मुझ गरीब पर अनुग्रह करें। राजा भतृहरि को फलकी भेट दिव्य फल का प्रभाव विप्र के मुख से सुन कर गोब्राह्मणप्रतिपालक महाराज ने प्रसन्नता से फल स्वीकार किया और कुछ धन देकर ब्राह्मण की दरिद्रता को दूर भगाया / धन लेकर ब्राह्मण आनन्दित होता हुआ अपने घर लौटा। बाद सभा विसर्जन कर महाराज अन्तःपुर में गये। ... वाचक गण ! आप को यह ज्ञात होगा कि महाराज भर्तृहरिकी पटरानी का नाम इस चरित्रकार ने ' अनङ्गसेना' निर्देश किया है किन्तु आफ्ने नाटकादि अन्य पुस्तकों में पटरानी का ‘पिंगला' नाम ज्यादातर पढा होगा / अतः सम्भव हो सकता है कि अनङ्गसेना का ही अपरनाम पिंगला हो / महाराज भर्तृहरि को पटरानी अत्यन्त सम्माननीय एवं अनुपम प्रीतिपात्र थी। वे उसके साथ सांसारिक सुख भोगते हुए शान्ति एवं प्रजाप्रेम के साथ अपना काल व्यतीत करते थे। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org