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________________ अब इसके बाद असद्भूत व्यवहार नय जो व्यवहारनय का दूसरा भेद है उसका प एवं भेद को प्रदर्शित करते हुए आचार्य कहते हैं कि - जो नय भिन्न वस्तुओं को विषय करने वाला है वह असद्भूत व्यवहार नय कहलाता है। जैसे - एक स्थान पर भेड़ें बैठी हुई हैं, परन्तु पृथक्-पृथक् हैं। इसी प्रकार यह नय भिन्न-भिन्न सत्ता वाले पदार्थों के सम्बन्ध को विषय करता है। ज्ञेय-ज्ञायक आदि सम्बन्ध इसके विषय हैं। असदभत व्यवहारनय भी दो प्रकार का है - उपचरित और अनुपचरित। जो संश्लेष सम्बन्ध से रहित हैं ऐसी भिन्न वस्तुओं का परस्पर में सम्बन्ध ग्रहण करता है वह उपचारितासद्भूत व्यवहारनय कहलाता है। जैसे - देवदत्त का धन। यहाँ देवदत्त भिन्न द्रव्य है और धन भिन्न द्रव्य है और इन दोनों में संश्लेष सम्बन्ध भी नहीं है। जो संश्लेष सम्बन्ध सहित वस्तु के सम्बन्ध को विषय करता है वह अनुपचरितासद्भूत व्यवहानय कहलाता है। जैसे - जीव का शरीर इत्यादि। यहाँ जीव भिन्न द्रव्य है और शरीर भिन्न द्रव्य है, परन्तु दोनों में संश्लेष सम्बन्ध है।' वही सू. 226-228 93 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004264
Book TitleDevsen Acharya ki Krutiyo ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages448
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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