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________________ पर्याय अर्थ __व्यञ्जन व्यञ्जन स्वभाव विभाव स्वभाव स्वभाव विभाव दि अगुरुलघुविकार .. 1. मिथ्यात्व षड्बृद्धि षड्हानि 2. कषाय ___द्रव्य गुण द्रव्य गुण 1. अनन्तभागवृद्धि-हानि 3. राग 2. असंख्यातभागवृद्धि-हानि 4. द्वेष पुद्गल जीव पुद्गल जीव / 3. संख्यातभागवृद्धि-हानि 5. पुण्य पुद्गल जीव पुद्गल जीव 4. संख्यातगुणवृद्धि-हानि 6. पाप 5. असंख्यातगुणवृद्धि-हानि 6. अनन्तगुणवृद्धि-हानि अर्थपर्याय - जो पर्याय सूक्ष्म है, ज्ञान का विषय है, शब्दों से नहीं कही जा सकती अर्थात् वचन के अगोचर, क्षण-क्षण में नाश होती रहती है वह अर्थपर्याय कहलाती है। व्यञ्जनपर्याय - जो पर्याय स्थल है, ज्ञान का विषय है, शब्दगोचर है, चिरस्थायी रहती है वह व्यञ्जन पर्याय कहलाती है। इन दोनों अर्थपर्याय और व्यञ्जनपर्याय में से दोनों के स्वभाव और विभाव के भेद से दो-दो भेद हैं। स्वभाव पर्यायें सभी द्रव्यों में पायी जाती हैं परन्तु विभाव पर्यायें मात्र जीव और पुद्गल द्रव्यों में ही पायी जाती है, क्योंकि ये दो द्रव्य ही बन्ध अवस्था को प्राप्त हो जाते हैं। जीव में जीवत्वरूप स्वभाव पर्यायें हैं और कर्मकृत विभाव पर्यायें होती हैं। पुद्गल में विभावपर्यायें कालप्रेरित होती हैं जो स्निग्ध एवं रुक्ष गुण के कारण बन्धरूप होती हैं। 64 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004264
Book TitleDevsen Acharya ki Krutiyo ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages448
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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