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________________ का स्वरूप बताते हुए लिखते हैं कि बन्ध के हेतुओं के अभाव और निर्जरा से सब कर्मों का आत्यन्तिक क्षय होना ही मोक्ष कहलाता है।' ___ मोक्ष के दो भेद कहे हैं-एकदेश और सर्वदेश। मोक्ष शब्द का अर्थ है छूटना। चारों घातिया कर्मों का नाश हो जाता तो उसे एकदेश मोक्ष कहते हैं, क्योंकि कर्मों में घातिया कर्म सबसे प्रबल हैं। जब इन कर्मों का नाश हो जाता है तो शेष कर्मों का नाश भी अवश्य होगा, इस अपेक्षा से इसे एकदेश या भावमोक्ष कहा जाता है। इसी तरह शेष अघातिया कर्मों का सम्पूर्ण रूप से नाश हो जाना सर्वदेश या द्रव्यमोक्ष कहलाता है। समस्त कर्मों के नाश हो जाने से यह संसारी जीव ही मुक्त जीव की संज्ञा को प्राप्त हो जाता है। इन्हीं सातों तत्त्वों में पुण्य और पाप को जोड़ देने से ये नौ पदार्थ कहलाते हैं। इसीलिए जो जीव सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान, सम्यग्चारित्र को धारण कर लेता है और जिसकी कषायें सब शान्त हो जाती हैं, उस समय वह जीव पुण्यरूप कहलाता है जो आत्मा को पवित्र बनाता है अथवा पवित्र करता है वह पुण्य है और इसी के विपरीत जो जीव को अपवित्र बनाता है अथवा जीव का पतन करवाता है वह पाप कहलाता है। जिसके मिथ्यात्व, मिथ्याज्ञान, मिथ्याचारित्र, हिंसा आदि क्रियायें होती हैं वह पापी कहलाता है। ___त. सू. 10/2 47 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004264
Book TitleDevsen Acharya ki Krutiyo ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages448
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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