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________________ गुड़ खाण्ड शर्करा अमृत 1-25 26-50 51-75 76-100 इनमें सम्यग्दृष्टि और मिथ्यादृष्टि चतु:स्थानीय अर्थात् गुड़, खाण्ड, शर्करा और अमृत रूप अनुभाग बन्ध करता है। परन्तु 10वें गुणस्थानवर्ती क्षपक श्रेणी वाला जीव अमृत का सम्पूर्ण भाग बन्ध करता है। यह अनुभाग बन्ध कषाय की तीव्रता और मन्दता के द्वारा भिन्न-भिन्न तरह से बन्धता है। इसलिये कषाय की तीव्रता में पुण्य प्रकृति का कम और पाप प्रकृति का अधिक अनुभाग बन्ध होता है एवं कषाय की मन्दता में पुण्य प्रकृति का अधिक और पापप्रकृति का कम अनुभाग बन्ध होता है। किसी निश्चित अवधि के अनुरूप आत्मा के प्रदेशों के साथ एकमेक होना / स्थिति बन्ध कहलाता है। आठों कर्मों की स्थिति भी कषाय की तीव्रता और मन्दता के . आधार पर ही बंधती है। आठों कर्मों की उत्कृष्ट स्थिति एवं जघन्य स्थिति को हम इस तालिका के द्वारा समझते हैं- . कर्म जघन्य स्थिति ज्ञानावरण दर्शनावरण वेदनीय मोहनीय उत्कृष्ट स्थिति तीस कोड़ाकोड़ी सागर तीस कोड़ाकोड़ी सागर तीस कोड़ाकोड़ी सागर सत्तर कोड़ाकोड़ी सागर तैंतीस सागर | बीस कोड़ाकोड़ी सागर | बीस कोडाकोड़ी सागर तीस कोड़ाकोड़ी सागर अन्तर्मुहूर्त | अन्तर्मुहूर्त बारह मुहूर्त | अन्तर्मुहूर्त . | अन्तर्मुहूर्त | आठ मुहूर्त आठ मुहूर्त अन्तर्मुहूर्त आयु नाम गोत्र अन्तराय आचार्य देवसेन स्वामी ने प्रदेश बन्ध की विशेष व्याख्या नहीं की है बस सामान्य से वर्णन किया है। आचार्य उमास्वामी महाराज ने प्रदेशबन्ध का बडा ही सन्दर Jain Education Interational For Personal Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004264
Book TitleDevsen Acharya ki Krutiyo ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages448
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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