________________ नहीं होगा? अवश्य ही होगा। गो वध का विषय वर्णन वेदादि शास्त्रों में अनेकों स्थलों में आता है। कृष्ण यजुर्वेदीय तैत्तिरीय ब्राह्मण अष्टक 3 अध्याय 9, सायण भाष्य में , खदिर गृह्यसूत्र पटल 3 खण्ड 4 आदि में भी गाय का हवन करने का विधान है। एक ओर गाय की योनि की वन्दना करते हैं और दूसरी ओर गाय के मांस को श्रोत्रिय लोग भक्षण करते हैं, यह साक्षात् विपरीतता है। वर्तमान परिप्रेक्ष्य में श्रोत्रिय का अर्थ विपरीत कर लिया है। वास्तविक श्रोत्रिय सर्वथा ब्रह्मचारी होता है। मद्य-मांसादि निन्द्य पदार्थों का सेवन कभी नहीं करता और कभी भी जीव हिंसा नहीं करता, परन्तु जो लोभी है, लालची है, ठग है, मद्य-मांस भक्षण का अभिलाषी है और स्त्री सेवन में आसक्त है वही बनावटी श्रोत्रिय है। यज्ञ में पशुवध का विधान करता है, इस प्रकार वह स्वयं नरक जाता है और यजमानों को भी ले जाता है। इस प्रकार से जो इस विपरीत मिथ्यात्व का पालन करता है वह निश्चित रूप से नरक को प्राप्त करता है वह स्वर्ग तो कदापि प्राप्त नहीं कर सकता है। यदि किसी वजह से वह नरक से निकलता भी है तो उसी तिर्यञ्च योनि में उत्पन्न होकर श्रोत्रियों द्वारा यज्ञ में मारा जाता है। इस प्रकार वेद के कहे अनुसार यह जीव अनेक प्रकार की दुर्गतियों को प्राप्त होता है और फिर बार-बार मरकर नरक में जाता है। इस प्रकार जो मनुष्य इस विपरीत मिथ्यात्व का सर्वथा त्याग करता है वह स्वर्गादिक के उत्तम स्थान को प्राप्त करता है। अब एकान्त मिथ्यात्व की उत्पत्ति एवं दोष को बतलाते हुए आचार्य कहते हैं कि - भगवान पार्श्वनाथ के तीर्थकाल में सरय नदी के तट पर पलाश नामक नगर में पिहितास्रव का शिष्य बुद्धकीर्ति मुनि जो महान् शास्त्रज्ञ था, वह मछलियों के आहार करने से दीक्षा से भ्रष्ट हुआ और उसने रक्ताम्बर (लाल वस्त्र) धारण करके एकान्त मत को प्रवर्तित किया। उसका मानना था कि फल, दूध, दही, चीनी आदि के समान मांस और जल एवं दूध के समान द्रव पदार्थ होने से शराब भी सेवनीय है, त्याज्य नहीं है।' उनके और भी दोष बताते हुए कहते हैं कि - ये सभी पदार्थों को क्षणिक मानते हैं। यह भा. सं. गा. 58-59 द, सा. गा. 6-7 वही गा. 8-9 372 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org