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________________ यहाँ कोई कहता है कि जितने भी धान्य, फल, फल आदि हैं वे सब जीव के शरीर के ही अंग है, इसलिये वे भी मांस रूप हैं। उनका समाधान करते हुए आचार्य कहते हैं कि यद्यपि वृक्षादि जीव हैं परन्तु उनका मांस नहीं होता, जिस प्रकार त्रस जीवों का होता है, क्योंकि वृक्ष ही जिनका शरीर है वे हैं वनस्पति जीव। अतः वृक्ष में रहने वाले जीव मरकर अन्यत्र चले जाते हैं और शरीर रूप वृक्ष यहीं रह जाता है और मांस में रुधिर आदि सात कुधातुयें होती हैं परन्तु वृक्षों आदि में ऐसा कुछ भी नहीं पाया जाता है। गाय से दूध भी प्राप्त होता है और मांस भी प्राप्त होता है, परन्तु दूध शुद्ध एवं भक्ष्य है और मांस अशुद्ध एवं सर्वथा अभक्ष्य है। दूध प्राप्ति में गाय को कोई भी कष्ट नहीं होता परन्तु, मांस प्राप्ति में उसकी जान चली जाती है। जिस प्रकार विष वृक्ष के पत्ते आयु बढ़ाते हैं और उसकी जड़ मृत्यु का कारण है, उसी प्रकार मांसभक्षण महापाप के बंध का और दर्गतियों का कारण है और दूध स्वास्थ्य लाभ में सहायक है। इन सब कारणों को समझकर यह कभी नहीं कहना चाहिये कि मांस और धान्य दोनों समान हैं। . अत: मांसभक्षण करना महानिंद्य और महापाप एवं दुर्गति का कारण है। उसको ऐसा जानकर सदा के लिये त्याग देना चाहिये और पूर्वोक्त विपरीत मान्यताओं का भी सर्वथा त्याग कर देना चाहिये। इसमें किसी भी प्रकार का कोई सन्देह नहीं है। इस प्रकार संक्षेप से मांसभक्षण के दोष बतलाये हैं। अब आगे गो योनि वंदना के दोष बतलाते हैं - जो लोग गाय के मुख को अपवित्र कहकर छोड़ देते हैं और उसकी योनि की वन्दना करते हैं, यह उनका विपरीत श्रद्धान है, इसीको प्रगट अथवा साक्षात् मिथ्यात्व कहते हैं। उनके लिये आचार्य कहते हैं कि यदि आप लोगों ने यही मान लिया है गाय चाहे भिष्ठा भक्षण करती रहे तथापि वह वन्दनीय है, तो फिर उसे कभी भी बाँधना नहीं चाहिये, कभी नहीं मारना चाहिये और कभी दुहना भी नहीं चाहिये, वह गाय वन्दनीय कैसे हो सकती है जो स्वयं पापकर्म के उदय से पशु पर्याय को प्राप्त हुई है, अविवेकी है, घास-फूस-भिष्ठा आदि भक्षण करती है। जो लोग ऐसा मानते हैं कि गाय प्रत्यक्ष देवता है और वे ही गवोत्सव में उसी गाय को मारकर उसका मांस खा जाते हैं। क्या उस गाय को मारने से समस्त देवों का घात भा. सं. गा. 49 वही गा. 51 371 Jain Education International For Personal & Private Use Only www ainelibrary.org
SR No.004264
Book TitleDevsen Acharya ki Krutiyo ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages448
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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