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________________ आगे भी आचार्य कहते हैं कि यदि पितरों को श्राद्ध में खिलाये गये मांस से तृप्ति मिल जाये तो इस संसार में यज्ञ, होम, स्नान, जप-तप और वेदाध्यानादि व्यर्थ हो जायेंगे, क्योंकि सभी को तृप्ति श्राद्ध से ही हो जायेगी। जबकि सभी जीव अपने-अपने पुण्य और पाप कर्मों के फल से ही नरनारकादि पर्यायों को प्राप्त होता है। यदि ऐसा माना जाये कि जिन पितरों को पापकर्म के फल से नरक की प्राप्ति हो चुकी है और श्राद्ध में पिण्डदान करने से उनका उद्धार हो सकता है, तो फिर ऐसा भी संभव है कि जो पितर पुण्यकाल से स्वर्ग में गये हैं वे पुत्र द्वारा ब्रह्म हत्या आदि महापाप के प्रभाव से भरक को प्राप्त हो जायेंगे। परन्तु ऐसा कदापि सम्भव नहीं है। जो पुण्य करता है वह स्वर्ग जाता है और पाप करता है तो नरक जाता है। ऐसा कभी नहीं हो सकता है कि पाप करे कोई और फल किसी को मिले अथवा पुण्य कोई करे और स्वर्ग कोई और जाये, क्योंकि ये अटल नियम है कि जो जैसा करता है वैसा ही फल पाता है। यदि ऐसा न माना जाय तो संसार से पुण्य और पाप का लोप हो जायेगा। अत: पितरों के उद्धार के लिये श्राद्ध करना व्यर्थ है। श्राद्ध एवं बलि यज्ञादि में महादोष है ऐसा बताते हुए आचार्य कहते हैं कि - कोई मत वाले कहते हैं कि विष्णु कण-कण में हैं, समस्त संसार और समस्त जीव विष्णुमय हैं। यदि कोई भी व्यक्ति वृक्ष को काटता है तो मानो वह साक्षात् विष्णु को ही काटता है। कितने आश्चर्य की बात है कि जिनकी मूर्ति बनाकर पूजा जाता है ऐसे उन विष्णु के अवतारों (सुअर, कच्छप, मत्स्य आदि) को पितरों के लिये मारकर खिलाते हैं, यह कैसी विपरीत और आश्चर्यजनक बात है।' और भी कहते हैं कि यदि अपने ही देव को मारकर उसका मांस खाकर जीव स्वर्ग में जाता है तो फिर अन्य ऐसे कौन से पाप हैं जिनसे यह जीव नरक जायेगा, क्योंकि ऐसे महापाप से भी यह जीव स्वर्ग में जाता है तो फिर संसार में नरक जाने योग्य कोई भी महापाप नहीं होगा। भा. सं. गा. 33 भा. सं. गा. 37 वही गा. 41-42 369 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004264
Book TitleDevsen Acharya ki Krutiyo ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages448
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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