SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 360
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रतिमा - मणि, स्वर्ण, रत्न, चाँदी, पीतल, मुक्ताफल और पाषाण आदि से प्रतिमा की लक्षण विधिपूर्वक अरिहन्त, सिद्ध आदि की प्रतिमा बनवाना चाहिये।' जिनबिम्ब जिनेन्द्र भगवान् की अनुकृति का निर्माण है, इसमें बहुत सावधानी की आवश्यकता होती है। प्रथमतः धातु या पाषाण का चुनाव किया जाता है तथा सामर्थ्यानुसार सोना, चाँदी, माणिक्य, मूंगा, पन्ना आदि धातुओं-पाषाणों से जिन प्रतिमाओं का निर्माण कराया जाता है। यदि प्रतिमा तैयार मिले तो उसमें निम्न लक्षण देखना चाहिये - सांगोपांग, सुन्दर, मनोहर, कायोत्सर्ग खड्गासन अथवा पद्मासन, दिगम्बर, युवावस्था, शान्तिभावयुक्त, हृदय पर श्रीवत्स का चिह्नसहित, नखकेशहीन, पाषाण या धातु द्वारा रचित, समचतुरन संस्थान, वैराग्यमय प्रतिमा पूज्य होती है। नासाग्र दृष्टि और क्रूरतादि 12 दोष (रौद्र, कृशांग, संक्षिप्तांग, चिपिटनासा, विरूपक नेत्र, हीनमुख, महोदर, महाअंस, महाकटी, हीनजंघा, शुष्क जंघा) रहित प्रतिमा होना चाहिये।' प्रतिष्ठा विधि - इस पूजा में उपर्युक्त तीन पूर्तियाँ हो जाने के उपरान्त विधिपूर्वक प्रतिमा की प्रतिष्ठा होना आवश्यक है। इसके लिये पंचकल्याणक महोत्सव एवं गजरथ का आयोजन भी किया जाता है। प्रतिष्ठा फल - प्रतिष्ठा हो चुकने के बाद जो फल की इच्छा होती है, प्राप्ति होती है और स्वर्ग सुख आदि पूर्वक मोक्ष की सिद्धि होती है वह प्रतिष्ठा का फल है। द्रव्य पूजा - द्रव्य पूजा का स्वरूप स्पष्ट करते हुए आचार्य लिखते हैं कि - अर्हदादिकों के उद्देश्य से गन्ध, पुष्प, धूप, अक्षतादि समर्पण करना यह द्रव्यपूजा है तथा उठ करके खड़े होना, तीन प्रदक्षिणा देना, नमस्कार करना आदि शरीर क्रिया करना, वचनों से अर्हदादि के गुणों का स्तवन करना, यह भी द्रव्य पूजा है।' बाह्य द्रव्यों का आलम्बन लेकर प्रारम्भिक चतुर्थ, पंचमादि गुणस्थानवर्ती श्रावक/पूजक पूज्य पुरुषों अर्थात् अरिहन्तादि की जो भावपूर्वक अर्चन करता है उसे द्रव्यपूजा कहते हैं। आचार्य वसुनन्दि महाराज कहते हैं कि द्रव्य पूजा तीन प्रकार की है - सचित्त, अचित्त और मिश्र अर्थात् वसु. श्रा. गा. 390 जयसेन प्रतिष्ठापाठ 151-152 आशाधर प्रतिष्ठापाठ पृ. 7 भ. आ. वि. 47/159, अ. ग. श्रा. 12/12 354 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004264
Book TitleDevsen Acharya ki Krutiyo ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages448
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy