________________ धन-सम्पदा, युवावस्था, शरीर में तेज, श्रेष्ठ पति/पत्नी, भोग भूमि की प्राप्ति आदि सभी दान के प्रताप से ही प्राप्त होते हैं। दान की महिमा तो आचार्यों ने अनेक प्रकार से की है। आचार्यों ने लिखा है कि - जो भी श्रावक तीर्थंकर मुनिराज को प्रथम आहार देता है उसको उसी भव से मोक्ष की प्राप्ति होती है और देवों के द्वारा पञ्चाश्चर्य भी प्रकट होते हैं। 345 Jain Education International For Personal Private Use Only www.jainelibrary.org