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________________ का स्वरूप बताते हुए आचार्य कुन्दकुन्दस्वामी लिखते हैं कि - जो सम्यग्दर्शन से शद्ध है, धर्म्यध्यान में लीन रहता है, सब तरह के परिग्रह और मायादि शल्यों से रहित है, उसको विशेष पात्र कहते हैं, उससे विपरीत अपात्र हैं। पात्र का ही लक्षण आचार्य पूज्यपाद स्वामी कहते हैं कि - जो मोक्ष के कारणभूत गुणों से संयुक्त होता है वह पात्र कहलाता है। पं. आशाधर जी भी पात्र का लक्षण बताते हुए कहते हैं कि - जो जहाज की तरह अपने आश्रित प्राणियों को संसार रूपी समुद्र से पार कर देता है वह पात्र कहलाता है। और भी कहते हैं - जो अतिशय युक्त ज्ञानादि गुण रूपी रत्नों को प्राप्त अथवा गुणों की प्रकर्षता को प्राप्त है वह पात्र है। पात्र के भेद बताते हुए आचार्य कहते हैं - अविरत सम्यग्दृष्टि, देशव्रती, श्रावक, महाव्रतियों के भेद से आगम में रुचि रखने वाले तथा तत्त्व के विचार करने वालों के भेद से हजारों प्रकार के पात्र जिनेन्द्र भगवान् ने बतलाये हैं। ये भेद मात्र आचार्यवर कुन्दकुन्दस्वामी के अलावा अन्य किसी भी आचार्य के द्वारा निरूपित नहीं किये गये। शेष सभी आचार्यों ने पात्र के तीन भेद किये हैं। आचार्य देवसेन स्वामी ने भी पात्र के तीन भेद किये हैं। उत्तमपात्र, मध्यमपात्र और जघन्यपात्र। इनमें से उत्तमपात्र रत्नत्रय को धारण करने वाले निर्ग्रन्थ मुनि हैं, मध्यम पात्र अणुव्रती श्रावक हैं और जघन्य पात्र अविरत सम्यग्दृष्टि जीव हैं। कुपात्र का लक्षण कहते हुए आचार्य लिखते हैं कि - उपवासों से शरीर को कृश करने वाले, परिग्रह से रहित, काम-क्रोध से विहीन परन्तु मन में मिथ्यात्व भाव को धारण करने वाले जीव को अपात्र या कपात्र समझना चाहिये। कुपात्र का स्वरूप बताते हुए आचार्य देवसेन स्वामी लिखते हैं कि - जो पुरुष रत्नत्रय से रहित है और मिथ्या र. सा. गा. 125 स. सि. 7/39, रा. वा. 7/39/5 सा. ध. 5/43 स्थानां. अभय. तृ. 1/37 र. सा. गा. 123, व. श्रा. गा. 221-222, प. पं. 2/48, अमि. श्रा. 10/2,4, सा. ध. 5/44, बा. अ. 17-18, ज. प. 2/149-151 भा. सं. गा. 497-498, पु. सि. श्लोक 171 ज. प. 2/150 331 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004264
Book TitleDevsen Acharya ki Krutiyo ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages448
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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