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________________ धारणा और स्मृति कारण है, प्रत्यभिज्ञान कार्य है। स्मृति और प्रत्यभिज्ञान में कारण कार्य का भेद है। अवग्रह, ईहा, अवाय और धारणा चारों क्षणभर में भी हो सकते हैं और कुछ काल के बाद भी हो सकते हैं। अवग्रह, ईहा, अवाय और धारणा जिन पदार्थों का होता है उन पदार्थों को आचार्यों ने 12 प्रकार से वर्णित किया है। जो निम्न हैं 'बहु-बहुविध-क्षिप्रानिः सृतानुक्त-ध्रुवाणां सेतराणाम्" अर्थात् बहु, बहुविध, क्षिप्र, अनि:सृत, अनुक्त और ध्रुव एवं इन छहों के . विपरीत छह एक, एकविध, अक्षिप्र, निःसृत, उक्त और अध्रुव इस प्रकार इन पदार्थों के बारह भेद हो जाते हैं। इन्हीं बारह पदार्थों का अलग-अलग क्रमशः अवग्रह, ईहा, अवाय और धारणा होती है। इस तरह 12x4-48 भेद हो जाते हैं। इन्हीं पदार्थों का अर्थावग्रह पाँच इन्द्रिय और मन से उत्पन्न होता है इसलिये 48x6-288 भेद हो जाते हैं। बारह पदार्थों का जो अस्पष्ट पदार्थ हैं उनका सिर्फ अवग्रह होता है जो आचार्यों ने व्यञ्जनाग्रह के नाम से उल्लिखित किया है। व्यञ्जनावग्रह किससे होता है तो उसके समाधान में आचार्य उमास्वामी तत्त्वार्थसत्र में लिखते हैं कि चक्ष और अनिन्द्रिय अर्थात मन से नहीं होता है शेष चार इन्द्रियों से होता है अतः 12x4-48 भेद हो जाते हैं। इस प्रकार मतिज्ञान के कुल भेद 288 + 48 = 336 हो जाते हैं। अर्थात् मुख्य रूप से मतिज्ञान के चार भेद और भेदों का प्रभेद करने पर 336 भेद हो जाते हैं। __ श्रुतज्ञान के विषय में आचार्य लिखते हैं कि-'जो ज्ञान मतिज्ञान पूर्वक होता है उसे श्रुतज्ञान कहते हैं।' श्रुतज्ञान के अंगबाह्य और अंगप्रविष्ट ये दो भेद हैं।' अंगबाह्य श्रुतज्ञान के दशवैकालिकादि अनेक भेद होते हैं। इस अपेक्षा से अंगबाह्य अनेक भेद वाला हो जाता है। त. सू. 1/16 न चक्षुरनिन्द्रियाभ्याम्। 1/19 श्रुतं मतिपूर्वं द्वयनेकद्वादशभेदम्। त. सू. 1/20 26 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004264
Book TitleDevsen Acharya ki Krutiyo ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages448
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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