________________ सल्लेखना की तैयारी हमें अच्छी प्रकार से करना चाहिये। जिस प्रकार दिन भर की प्रवृत्तियों के पश्चात् दिन का प्रकाश कम होने पर थकान को दूर करने के लिये बडी उत्कंठा से रात के विश्राम की नींद की तैयारी करने लगते हैं, उसी प्रकार प्रत्येक श्रावक और साध को जीवन की थकान से विश्राम पाने के लिये सल्लेखना की तैयारी करना चाहिये। कहीं हमारा जीवन बच्चों की तरह तो नहीं है कि उन्हें जब नींद आती है, जहाँ हैं वहीं गिर जाते हैं और सो जाते हैं। सोने की कोई तैयारी नहीं है। अतः सभी गृहस्थों को अपने मरण की भी तैयारी अच्छी प्रकार से करना चाहिये। आचार्य समन्तभद्र स्वामी कहते हैं कि - अन्तक्रियाधिकरणं तपः फलं सकलदर्शिनः स्तुवते। तस्माद्यावद्विभवं समाधिमरणे प्रयतितव्यम्॥' अर्थात् सर्वज्ञ भगवान् संन्यास धारण करने को तप का फल कहते हैं, इसलिये यथाशक्ति समाधिमरण के विषय में प्रयत्न करना चाहिये अर्थात् संन्यास धारण करना ही तपश्चरण आदि का फल है। अतः इस अन्तिम क्रिया का आश्रय अवश्य लेना चाहिये। पूर्वकथित कारण उपस्थित होने पर तो यम अथवा नियम सल्लेखना धारण करनी ही चाहिये, किन्तु निमित्तज्ञान से अपनी अल्प आयु का निर्णय करके भी सल्लेखना धारण करना चाहिये। मानव की मृत्यु के पूर्व शरीर में कुछ ऐसे लक्षण प्रकट होते हैं जिनसे आयु का निर्णय किया जा सकता है। इसी विषय में आचार्य दुर्गदेव कहते हैं कि - पिण्डत्थं च पयत्थं रूवत्थं होइ तं पि तिवि अप्पं। जीवस्स मरणकाले रिट्ठ णस्थित्ति संदेहो।' इसमें सन्देह नहीं है कि मरण समय में पिण्डस्थ (शारीरिक), पदस्थ (चन्द्र, सूर्य आदि आकाशीय ग्रहों के दर्शनों में विकृति) और रूपस्थ (निज छाया, परछाया आदि अंगविहीन दर्शन) इन तीन प्रकार के अरिष्टों का आविर्भाव होता है। मरण के पूर्व प्रगट होने वाले इन लक्षणों को अरिष्ट कहते हैं। 1 2 र. श्रा. श्लो. 17 रिष्ट समच्चय गा. 17 310 Jain Education Interational For Personal & Private Use Only www.lainelibrary.org