________________ सामायिक कहते हैं।' शत्रु-मित्र, मणि-पाषाण और सुवर्ण-मृतिका में राग-द्वेष के अभाव को समता अथवा सामायिक कहते हैं। आचार्य कार्तिकेय स्वामी कहते हैं कि सामायिक करने के लिये क्षेत्र, काल, आसन, विलय, मन शुद्धि, वचन शुद्धि और काय शुद्धि, ये सात बातें जाननी चाहिये।' सामायिक व्रत के पाँच अतिचार आचार्यों ने प्ररूपित किये हैं - सामायिक करते समय वचनों की प्रवृत्ति करना, शरीर को चलायमान करने की चेष्टा, मन में आर्त्त-रौद्रादि चिन्तन करना, सामायिक में उत्साह नहीं रहना और पाठ अथवा कायोत्सर्ग आदि भूल जाना।' इन अतिचारों के कारण सामायिक में एकाग्रता नहीं बन पाती है। सामायिक की महिमा का गुणगान तो इन्द्र भी नहीं कर सकता है। समता रूप परिणामों के साथ सामायिक चाहे दो घड़ी ही क्यों न करे, उस सामायिक से महान् कर्म निर्जरा होती है। सामायिक के प्रभाव से अभव्य जीव भी नौवें ग्रैवेयक तक पहुँच जाता है। जिसको सामायिक के विषय में कोई ज्ञान न हो तो भी यदि वह एकाग्रता के साथ मन, वचन, काय को निश्चल करके विषय कषायों का त्याग करके पञ्च नमस्कार मंत्र का ध्यान करता हुआ दो घड़ी पूर्ण करता है तो वह भी सामायिक है। 2. प्रोषधोपवास व्रत - पर्व के दिनों में अर्थात् अष्टमी और चतुर्दशी को चारों प्रकार के आहारों का सम्यक् इच्छापूर्वक त्याग करना प्रोषधोपवास व्रत जानना चाहिये। यहाँ आचार्य का यह आशय है कि धर्मानुरागी गृहस्थ द्वारा एक महीने में चार दिन समस्त पापों, आरम्भ और इन्द्रिय विषयों को छोड़कर व्रत, शील, संयम सहित उपवास धारण करके खाद्य, स्वाद्य, लेह्य और पेय इन चार प्रकार के आहार का त्याग करना प्रोषधोपवास है। प्रोषधोपवास के भेदों का वर्णन करते हुए आचार्य वसुनन्दि महाराज कहते हैं - उत्तम, मध्यम और जघन्य के भेद से तीन प्रकार का प्रोषधोपवास व्रत कहा गया है। माह अन. ध. 8/19 ध. 8/3, 41/84, मू. आ. 521, अ. ग. श्रा. 8/31 का. अ. गा. 354 त. सू. 7/33, र. श्रा. 105 र. श्रा. 106 304 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org