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________________ पालन में जयकुमार प्रसिद्ध हुए हैं। हिरण्य-सवर्ण आदि के प्रमाण का अतिक्रम नहीं करने से, यह व्रत निर्दोष पालन करने से परम्परा से मोक्ष की प्राप्ति होती है। गुणव्रत - गुण का अर्थ है उपकार। जो व्रत अणुव्रतों का उपकार करते हैं, उनकी वृद्धि में सहायक होते हैं, उन्हें गुणव्रत कहते हैं। गुण अर्थात् गुणा, जो अणुव्रतों में कई गुणा वृद्धि करते हैं वे गुणव्रत कहलाते हैं। गुणव्रत के तीन भेद आचार्य देवसेन स्वामी ने वर्णित किये हैं, जो कि आचार्य समन्तभद्र स्वामी, कार्तिकेय स्वामी, कुन्दकुन्दस्वामी, आचार्य रविषेण, पं. आशाधर आदि एवं बृहत् प्रतिक्रमण में भी निरूपित किये हैं। दिग्व्रत, अनर्थदण्ड विरतिव्रत और भोगोपभोग परिमाण व्रत।' कुछ आचार्यों अर्थात् आचार्य उमास्वामी, आचार्य पूज्यपाद स्वामी, आचार्य जिनसेन स्वामी, आचार्य अमृतचन्द्र स्वामी, सोमदेव सूरि, चामुण्डराय, आचार्य अमितगति, आचार्य पदमनन्दि और लाटी संहिताकार ने दिग्व्रत, देशव्रत और अनर्थदण्डविरति व्रत को गुणव्रत के भेदों में स्वीकार किया है। यहाँ आचार्य समन्तभद्र एवं आचार्य देवसेन आदि आचार्यों ने दिग्व्रत और देशव्रत को एक में ही समाहित किया है। 1. दिग्व्रत - दशों दिशाओं में आने-जाने का परिमाण करके कि अमुक दिशा में अमुक क्षेत्र के बाहर जीवन पर्यन्त नहीं जाऊँगा, लोभ का त्याग करने के निमित्त से अहिंसा धर्म की वृद्धि हेतु ऐसा त्याग करता है तो वह दिग्व्रत कहलाता है।' दिग्व्रत के पालन करने से सूक्ष्म पाप का भी त्याग हो जाता है और वह श्रावक भी उपचार से महाव्रत की कोटि में आ जाता है। प्रत्याख्यानावरण कषाय का उदय होने से महाव्रती नहीं हो पाता आचार्य कार्तिकेय स्वामी कहते हैं कि जैसे लोभ का नाश करने के लिये जीव परिग्रह का परिमाण करता है, वैसे ही समस्त दिशाओं का परिमाण भी नियम से लोभ का नाश करता है। अतः आवश्यकता को समझकर सुप्रसिद्ध स्थानों में सभी दिशाओं का जो परिमाण किया जाता है वह दिग्व्रत कहलाता है। लिये गये परिमाण में कुछ समय र. श्रा. 67, भा. सं. गा. 354 त. सू. 7/21, वसु. श्रा. 214-216 र. श्रा. 68, भा. सं. गा. 354 कार्ति. गा. 341-342 299 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004264
Book TitleDevsen Acharya ki Krutiyo ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages448
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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