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________________ 1 5 3 4 2 5 2 4 3 1 3 4 5 1 2 2 5 3 4 1 5 1 2 3 4 1 4 2 5 3 2 3 4 5 1 3 5 1 4 2 4 5 1 2 3 2 4 3 1 5 , इस चित्र में याथातथ्यानुपूर्वी की विधि का एकमात्र उदाहरण प्रस्तुत किया गया है। इसमें णमोकारमंत्र के पाँचों पदों को क्रम से 12 की संख्या में प्रदर्शित किया गया है। ध्यान करने वाला इस विधि से बहुत ही ज्यादा एकाग्रता को प्राप्त करके अशुभ कर्मों की असंख्यात गुणी निर्जरा करके मुक्ति धाम को प्राप्त कर सकता है। णमोकार मंत्र को श्वासोच्छवास के अनुसार जाप करना सर्वश्रेष्ठ माना गया है। एक णमोकार मंत्र के जाप को तीन श्वासोच्छ्वास में पढ़ना चाहिये। जैसे–'णमो अरिहंताणं' को बोलते हुए श्वास खींचना है, 'णमो सिद्धाणं' बोलते हुए श्वास छोड़ना, 'णमो आइरियाणं' में श्वास खींचना, 'णमो उवज्झायाणं' बोलते हुए श्वास छोड़ना, 'णमो लोए' में श्वास खींचना और 'सव्वसाहूणं' को कहते हुए श्वास छोड़ना है। इस प्रकार तीन बार श्वास खींचने और छोड़ने में णमोकार मंत्र का एक जाप हो जाता है। इस श्वास खींचना और छोडना कम्भक और रेचक कहलाता है। श्लोकवार्तिककार के अनुसार मंत्रों का जाप चार प्रकार से किया जा सकता है ___ 'चतुर्विधा हि वाग्बैखरीमध्यमापश्यन्ती सूक्ष्माश्चेति।' 1. बैखरी 2. मध्यमा 3. पश्यन्ती 4. सूक्ष्म। 1. बैखरी - इस विधि में साधंक जोर-जोर से णमोकार मंत्र का उच्चारण करके जाप करता है। जिसको अन्य जन भी सहज ही सुन सकते हैं। इस विधि में शब्द बाहर बिखर जाते हैं. इसलिये इसे बैखरी विधि कहा जाता है। इस तरह के जाप में अधिक लाभ नहीं होता है। उत्तरोत्तर विधियों में अधिक लाभ की प्राप्ति होती है। 269 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004264
Book TitleDevsen Acharya ki Krutiyo ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages448
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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