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________________ अर्थात् परमेष्ठी वाचक पैंतीस, सोलह, छह, पाँच, चार, दो और एक अक्षर वाले मंत्र हैं, इनका जाप और ध्यान करना चाहिये। इनके अलावा अन्य मंत्रों का जाप गुरु के उपदेश के अनुसार करना चाहिये। साधक का मूल लक्ष्य - है आत्म जागरण। आत्म जागरण का अर्थ है निज का जागरण, आनन्द का जागरण, शक्ति का जागरण, अपने परमात्म स्वरूप का जागरण, अर्हन्त स्वरूप का जागरण। पञ्च नमस्कार मंत्र की साधना करने का भी सम्पूर्ण दृष्टिकोण आत्मा का जागरण करना है। पूरी तरह से चेतना को जागृत करना, आत्मतत्त्व में शक्ति के जो स्रोत विद्यमान हैं उनको जगाना, अपने आप को आनन्द के महासागर में अवगाहन करना। महामंत्र णमोकार की आराधना करने से निश्चित रूप से निर्जरा होती है, उस निर्जरा से आत्मा में विशुद्धि की वृद्धि होती है। इसलिये जब भी, जहाँ भी, जैसे भी हो, चलते-फिरते, उठते-बैठते, सोते-जागते, हमेशा इसका जाप करते रहना चाहिये। इस महामंत्र के जाप्य की अनेकों विधियाँ हैं, जो कि सभी पदस्थ ध्यान में सम्मिलित की जाती हैं। धवलाकार आचार्य श्री वीरसेन स्वामी ने इसके जाप्य की तीन विधियाँ प्ररूपित की हैं 1. पूर्वानुपूर्वी 2. पाश्चात्यानुपूर्वी 3. याथातथ्यानुपूर्वी 1. पूर्वानुपूर्वी - इस विधि में णमोकार महामंत्र का जाप्य पदों के क्रमानुसार किया जाता है। जैसे-णमो अरिहंताणं, णमो सिद्धाणं, णमो आइरियाणं, णमो उवज्झायाणं, णमो लोए सव्व साहूण।। 2. पाश्चात्यानपूर्वी - इस विधि में णमोकार महामंत्र का जाप्य पदों के विपरीत क्रमानुसार किया जाता है। जैसे - णमो लोए सव्व साहूणं, णमो उवज्झायाणं, णमो आइरियाणं, णमो सिद्धाणं, णमो अरिहंताणं। 3. याथातथ्यानुपूर्वी - इस विधि में णमोकार महामंत्र के पाँच पदों में से कोई भी पद पहा जाता है। परन्तु इस विधि में शर्त यही है कि ध्याता ध्येय के प्रति पूरी तरह से सावधान रहे और बिना भूले पाँचों पदों को पूर्ण करे, वह भूल न जावे, पाँच से अधिक पद न हों और पाँच से कम भी न हों। जैसे 268 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004264
Book TitleDevsen Acharya ki Krutiyo ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages448
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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