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________________ द्वितीय परिच्छेद : ध्यान का स्वरूप एवं भेद प्रारम्भ से ही विश्व में आध्यात्मिक उन्नति की धारा निरन्तर प्रवहमान रही है। जिसमें भारत की भी विविध संस्कृतियों, परम्पराओं, आचारों और विचारों का अद्भुत समन्वय दृष्टिगम हुआ है। इसी कारण से भारत को जगत् का आध्यात्मिक गुरु माना गया है। उसमें भी विभिन्न मतों, आचार-विचार में स्वविशिष्टता के कारण से सभी का परस्पर में पृथक् अस्तित्व है। एकाधिक अस्तित्व वाले होने पर भी सभी परम्पराओं में अनेक स्थलों पर समरसता है। जहाँ एक ओर कछ तथ्य एक दसरे के परक प्रतीत होते हैं. वहीं कुछ विपरीत। भारतीय ध्यान परम्परा भी इसकी सम्पोषक है। चार्वाक को छोड़कर भारत के प्रत्येक दर्शन ने किसी न किसी रूप में ध्यान की सत्ता को स्वीकार किया है। भारतीय परम्परा दो प्रमुख धाराओं में विभक्त है - वैदिक परम्परा और श्रमण परम्परा। श्रमण परम्परा में जैन और बौद्ध संयुक्त रूप से सम्मिलित हैं। इन तीनों परम्पराओं में प्राचीन काल से लेकर आज तक आध्यात्मिक उन्नति के लिये ध्यान साधना की परम्परा अविच्छिन्न रूप से प्रवहमान रही है। यद्यपि देश, काल, परिस्थिति के अनुरूप साधना की प्रक्रिया में परिवर्तन, परिवर्धन और परिशोधन होते रहे हैं, तथापि ध्यान परम्परा की मूल अवधारणा में परिवर्तन नहीं हुआ। ध्यान में एकाग्रता का होना अत्यावश्यक है. ऐसा प्रत्येक दर्शन स्वीकार करता है अथवा यह कहा जाय कि एकाग्रता का ही अपर नाम ध्यान है तो गलत न होगा। कोई ध्यान को समाधि का नाम देता है तो कोई ध्यान को साधना कहता है, नाम कोई भी हो परन्तु सबका अभिप्राय चित्त की एकाग्रता से मुक्ति प्राप्त करना ही है। , जैन परम्परा में आचार्य कुन्दकुन्द आदि अनेक आचार्यों ने ध्यान परम्परा को समय-समय पर विशिष्ट रूप से समृद्ध किया है, इसलिये जैन परम्परा में ध्यान से सम्बद्ध साहित्य प्रचुरता में प्राप्त होते हैं। आचार्य माघनन्दि ने 'ध्यान सूत्राणि' नाम से एक पृथक् ग्रन्थ ही रच दिया है, जो ध्यान के लिये उपयोगी सूत्रों का प्रतिपादन करता है। ध्यान के विषय में वैसे तो कई आचार्यों ने अपनी लेखनी को प्रवृत्त किया है, परन्तु उसमें पूज्य आचार्य कुन्दकुन्द, उमास्वामी, पूज्यपाद स्वामी, शुभचन्द्राचार्य, आचार्य देवसेन स्वामी और ब्रह्मदेव सूरि आदि प्रमुख हैं। 240 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004264
Book TitleDevsen Acharya ki Krutiyo ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages448
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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