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________________ यहाँ इस गाथा में आराधक के तीन विशेषण बताये गये हैं 1. संसार सुख विरक्त - इन्द्रिय सम्बन्धी विषयों से उत्पन्न जो सुख अर्थात् सुखाभास है उसका जिसने त्याग कर दिया है वह संसार सुख से विरक्त है, वही आराधक है। 2. परम वैराग्य उपशम को प्राप्त - शारीरिक वस्तुओं में राग का अभाव होने से जो वैराग्य सम्पन्न है और जो मोहनीय कर्म की सात प्रकृतियों के उपशम से उत्कृष्ट उपशमक भाव को प्राप्त हो चुका है वह आराधक है। 3. विविधतपतप्त देह - अन्तरंग और बहिरंग तपों से तप्त है देह जिसकी वह आराधक है। इन अन्य लक्षणों का कथन करने के पश्चात् और भी लक्षण प्रतिपादित करते हैं अप्पसहावे णिरओ वज्जियपरदव्वसंगसक्खरसो। णिम्महिय रायदोसो हवड़ आराहओ मरणे॥' अर्थात् जो आत्म स्वभाव में लीन है, जिसने परद्रव्य के संयोग से उत्पन्न सुख रूपी रस का त्याग कर दिया है और जिसने राग-द्वेष का मथन कर दिया है अर्थात् राग-द्वेष का नाश कर दिया है, ऐसा भव्य जीव मरण पर्यन्त आराधना का आराधक होता इस गाथा में भी तीन विशेषतायें/लक्षण व्यक्त किये गये हैं 1. आत्मस्वभाव में निरत - जो भव्य जीव अत्यन्त निर्मल ज्ञान और परम चिदानन्द एकमात्र लक्षण है, उसमें लीन रहता है। पर पदार्थों में इष्ट-अनिष्ट की कल्पना से दूर होने पर वह निर्मल हो जाता है, ऐसा निर्मल ज्ञानमय तथा निर्मल आनन्द ही आत्मा का स्वभाव है, जो पुरुष ऐसे आत्मस्वभाव में तत्पर रहता है, वह आराधक है। 2. परद्रव्य संग सौख्य रस रहित - समस्त परद्रव्य जो परमात्म पदार्थ से विलक्षण है ऐसे द्रव्य के संयोग से उत्पन्न सौख्य रस से विरहित है, आराधक है। आराधनासार गा. 19 222 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004264
Book TitleDevsen Acharya ki Krutiyo ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages448
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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