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________________ यहाँ आराधक के पाँच विशेषण दिये गये हैं 1. निहतकषाय - जिसने कषायों को नष्ट कर दिया हो। 2. भव्य - जो मोक्षप्राप्ति अथवा सम्यक्त्व प्राप्ति के योग्य हो। 3. सम्यग्दर्शनयुक्त - जीवादि तत्त्वों के स्वरूप पर समीचीन श्रद्धा रखने वाला हो। 4. सम्यग्ज्ञानयुक्त - जीवादि तत्त्वों का यथार्थ स्वरूप जानने वाला एवं हेय और उपादेय के ज्ञान से सहित हो। 5. द्विविध परिग्रहत्यागी - बाह्य रूप 10 और आभ्यन्तर रूप 14 ऐसे दोनों प्रकार के 24 परिग्रह से रहित हो। ... गाथा में जो 'मरणे' पद प्रयुक्त हुआ है उसके तात्पर्य से मैं डा. आनन्द कुमार जैन के कथन से बिल्कुल सहमत हूँ कि - आराधना मरण पर्यन्त होती है। आराधना का अभ्यास जीवनपर्यन्त होता है न केवल मरणकाल में। जो जीवनभर इन आराधनाओं का अभ्यास करता है वही मरणकाल में समताभाव से आराधक रह सकता है, मात्र मरणकाल में आराधना द्वारा मुक्ति की प्राप्ति विरले (भरत चक्रवर्ती, जो जीवन पर्यन्त साधु की तरह वैरागी रहे) होते हैं अथवा सुकमाल मुनि को ही होती है। अत: किसी एक के दृष्टान्त से सार्वभौमिक नियम नहीं बन सकता। इसलिये जो ये विचार करते हैं कि हम अन्त समय में ही धर्मधारण करके मुक्त हो जायेंगे तो वे भ्रम में ही जी रहे हैं। इन सब लक्षणों के अलावा और भी आराधक के लक्षण कहते हैं संसार सुहविरत्तो वेरग्गं परमउवसमं पत्तो। विविहतवतविय देहो मरणे आराहओ एसो॥' अर्थात् जो संसार सुख़ से विरक्त है, परम वैराग्य और उपशम भाव को प्राप्त है और जिसने विविध तपों से अपने शरीर को तपाया है, ऐसा भव्य प्राणी मरण पर्यन्त आराधक होता है। आराधनासार गा. 18 221 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004264
Book TitleDevsen Acharya ki Krutiyo ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages448
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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