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________________ ग्रन्थ में निर्दिष्ट विषय अक्सर पूर्व विषय से सम्बन्धित होता है और जिसे पूर्व का प्रसंग स्पष्ट नहीं होता उसे आगे का विषय भी स्पष्ट नहीं हो सकता। 8. अनिह्नवाचार - जिस गुरु के समीप अथवा जिस शास्त्र से ज्ञान की आराधना की है उसका नाम नहीं छिपाना अनिवाचार कहलाता है। एक अक्षर पढ़ाने वाले को भी भूलना महापाप है और जो आत्मकल्याणकारी ज्ञान देने वाले को भूल जाता है उसके बराबर कोई पाप नहीं है। गुरु अथवा शास्त्र का नाम छुपाने से आगे ज्ञान की वृद्धि रुक जाती है। अतः ज्ञान की वृद्धि के लिये अनिह्नवाचार का पालन करना चाहिये। वस्तुतः सम्यग्ज्ञान के बिना सम्यग्चारित्राराधना का पालन असम्भव है। जैसा कि प्रायः दृष्टिगोचर होता है कि कोई व्यक्ति ज्ञान के बिना ही मात्र आचरण करता है तो व्यर्थ ही परिश्रम करता है, क्योंकि इस व्यर्थ परिश्रम से इच्छित फल की प्राप्ति असंभव है। अतः ज्ञानाराधना ही अज्ञान का नाश करने वाली है और मुक्तिपद देने वाली है। इस प्रकार जिनभाषित आठ अंग सहित ज्ञान की आराधना करनी चाहिये। सम्यक्चारित्र आराधना सम्यग्दर्शनाराधना और सम्यग्ज्ञानाराधना की व्याख्या करके अब सम्यक्चारित्र आराधना का प्रतिपादन करते हैं तेरहविहस्स चरणं चारित्तस्सेह भावसुद्धीए। दुविह असंजमचाओ चारित्ताराहणा एसा॥' अर्थात् भावों की शुद्धिपूर्वक तेरह प्रकार के चारित्र का आचरण करना और दो प्रकार के असंयम का त्याग करना चारित्राराधना कहलाता है। पाँच महाव्रत (अहिंसा, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह), पाँच समितियाँ (ईर्या, भाषा, एषणा, आदान निक्षेपण और प्रतिष्ठापना/उत्सर्ग) और तीन गुप्ति (मन, वचन, काय) ये सब मिलाकर तेरह प्रकार का चारित्र कहलाता है। आराधनासार के संस्कृत टीकाकार पण्डिताचार्य रत्नकीर्तिदेव ने चारित्र की महिमा का गुणगान करते हुए कहा है आराधनासार गा.6 212 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004264
Book TitleDevsen Acharya ki Krutiyo ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages448
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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