________________ संज्ञित्व विमर्श - संज्ञी के सम्पूर्ण गुणस्थान सम्भव हैं परन्तु असंज्ञी प्रथम गुणस्थानवर्ती होते हैं। वेद विमर्श - द्रव्य वेद की अपेक्षा पुरुष वेद में सभी गुणस्थान संभव हैं, स्त्रीवेद में पञ्चम तक तथा नपुंसक वेद में भी पञ्चम गुणस्थान तक संभव हैं। सम्यक्त्व विमर्श - औपशमिक सम्यक्त्व के साथ 4,5,6,7,8,9,10 और 11 गुणस्थान संभव हैं। क्षायिक सम्यक्त्व के साथ 4 से 14 गुणस्थान संभव हैं। क्षायोपशमिक सम्यक्त्व के साथ 4,5,6 और 7वाँ गुणस्थान संभव हैं। संयम विमर्श - एक से चार गुणस्थान तक असंयम होता है। पञ्चम गुणस्थान में संयमासंयम होता है। सामायिक और छेदोपस्थापना संयम 6वें से 9वें गुणस्थान तक, परिहारविशुद्धि 6-7वें गुणस्थान में, सूक्ष्मसाम्पराय 10वें में तथा यथाख्यात 11वें से 14वें तक होता है। संख्या विमर्श - प्रथम गुणस्थान में जीवों की संख्या अनन्तानन्त है, द्वितीय गुणस्थान में पल्योपम का असंख्यातवाँ भाग प्रमाण तथा मनुष्यों की संख्या 52 करोड़, तृतीय गुणस्थान में जीवों की संख्या पल्योपम का असंख्यातवाँ भाग प्रमाण और मनुष्यों की संख्या 104 करोड़, चतुर्थ गुणस्थान में जीवों की संख्या पल्योपम का असंख्यातवाँ भाग प्रमाण तथा मनुष्यों की संख्या 700 करोड़, पञ्चम गुणस्थान में जीवों की संख्या पल्योपम का असंख्यातवाँ भाग प्रमाण तथा मनुष्यों की संख्या 13 करोड़ है। षष्ठ गुणस्थान में मनुष्यों की संख्या 59398206 है तथा सप्तम गुणस्थान में 29699103 है। अष्टम, नवम, दशम गुणस्थान में उपशम श्रेणी में 299 तथा क्षपक श्रेणी में 598 मनुष्य संभव हैं। 11वें गुणस्थान में 299 तथा 12वें गुणस्थान में 598 मनुष्य संभव हैं। 13वें गुणस्थान में मनुष्यों की संख्या 898502 तथा 14वें गुणस्थान में 598 है। यह उत्कृष्ट प्रमाण बताया गया है। क्षेत्र विमर्श - ऊर्ध्वलोक तथा अधोलोक में एक से चार गुणस्थान तक संभव हैं। मध्यलोक में मनुष्य क्षेत्र में सभी गुणस्थान संभव हैं। अन्तिम स्वयंभूरमण द्वीप के अर्द्धभाग में और स्वयंभूरमण समुद्र में एक से पाँच गुणस्थान तक संभव हैं तथा शेष भाग में एक से चार गुणस्थान तक हो सकते हैं। उपसर्ग की अपेक्षा के अतिरिक्त 198 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org